Krishna Arya   (✍️krishna arya)
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Joined 16 July 2020


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Joined 16 July 2020
27 JAN 2023 AT 18:02

तो क्या हुआ
फिर बर्बाद होंगें
फिर संभलेंगे
फिर आबाद होंगें।

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14 JUL 2021 AT 19:12

एक सच बोलूं
एकतरफा झूठ सा ।

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26 JAN 2021 AT 15:38

सोचता हूँ
कभी
कि कुछ मिठास
लिखू और
रख आऊँ
फूलों पर
कि कोई
भंवरा आए
और ले जाए चुनकर उसे
छत्ते तक
और पूरी दुनिया
चख ले उसे
पर
उसी पल है
ये लगता
शायद
मुझसे पहले ही
रख गया कोई
कड़वाहट वहां।

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22 JAN 2021 AT 21:24

मंज़िल
एक कठिन रास्ता
जिसकी ओर सब चले कुछ बैठे आधे राह में तो
कुछ तकलीफ़े देख
वापस चले
जो पहुंच गये
था उन्हें पता
कहाँ मंजिलें उन तक चले
गर इंसान है तू खुद
फिर क्यों डरता इंसान से
तुझे पता है
तू अलग सबसे
तो क्यों हर घड़ी खुदको
तोलता है सबसे
दो राह तो दो चाह भी पास तेरे
या तो
सुकून की चादर ओढ़ तू सो जा खो जा कहीं
और पा ले पकड़ ले सपने अपने
जो महज़ है बस खयाली सपने
या तू हकीकत में हो खड़ा
मुँह से
नींदी सपनों की काई हटा
और शीशे में देख ख़ुद को कल की परछाई में
पहले
ज़िद को भर ले सासों मैं
दिमाग़ को दौड़ाना सीख
जो सीख ले ये दौड़ना
तो चाहतों के पर खोल और
उड़ चल मंजिलों मैं

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16 DEC 2020 AT 17:45

हाँ ऐसा ही हूँ मै
पल भर मैं राम
पल भर मैं रावण

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4 DEC 2020 AT 23:26

बिखरे रिश्ते
सिमटे सोच
खोई इंसानियत
थोड़े सच
और
ढ़ेर सारे झूठ के साथ
मैले आइने में
तैयार हो रहा है
नया समाज।

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5 NOV 2020 AT 15:15

छलावे की बढ़ती ठंड मैं
जमी खुशी
सिसकती यादें
कपकपाते सच
और
अकड़े रिश्तों
के बीच
इक
उम्मीद का प्याला
है जो अब भी
गरम है।

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27 OCT 2020 AT 22:18

आलम देखिए
रावण दहन का
यहां हर जलाने वाला
खुद को राम समझ बैठा हैं.

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1 OCT 2020 AT 14:04

जनाब
इज्ज़त की नुमाइश तो
फ्री की है यहाँ
बस
इंसाफ़ की कीमत है
एक मोमबत्ती।

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27 SEP 2020 AT 22:20

राज है उसका
आज भी
हर नया दिन
फिर भी
रोज उड़ता है वो परिंदा
और लौट आता है घर रात।

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