लम्बा है सफ़र सितमग़रों को दूर किया जाए
बे-हद-ओ-बे-हिसाब ख़ुद पर ग़ुरूर किया जाए
कि लाज़मी है रुख़सत इस मतलब के दौर में
तो चलो फ़िर जज़्बातों को मस्तूर किया जाए
पलकों पे अश्क़ों का एक आशियाना बने
अब इतना भी न खु़द को मजबूर किया जाए
ये मोहब्बत की दुनिया महज़ चार दिन की
तो अब नफ़रत में ख़ुद को मग़रूर किया जाए
दोस्तों की महफ़िल और मयख़ाने की तलब
फ़िर साकी के दो जाम का सुरूर किया जाए
कि दम निकला है अधजले चराग़ों के नूर से
अब इससे बेहतर है ख़ुद को बेनूर किया जाए
सब समझने के ख़ातिर कुछ उलझना पड़ेगा
चलो ज़िन्दगी का हर मंज़र मंज़ूर किया जाए
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