सिवा मेरे ये कहो, ख़त्म-उल-राह तेरी, मैं ही तो हूं, तुम आओ तो, निखर जाना है मुझको, मेरे बिन, कहो, किधर जाना है तुमको... तेरे बिन, हां, बिखर जाना है मुझको...
हम ख़ुद ही ख़ुद पर सितम ढा गए हैं... कि समझा था जिसको, मुहाफिज़ हमारा, उसने ही डुबोया दिखाकर किनारा, कि उसकी दिखाई, राहों पर चलके, ख़ुद अपने ही हाथों, शिकस्त खा गए हैं...