तेरी बोलती आँखों पे , तुम ही कहो मैं क्या लिखूँ ,
गीत लिखूँ , नज़्म लिखूं , या कोई ग़ज़ल लिखूँ।
तेरे चहरे पे बयाँ हैमेरी शायरी के सारे हुनर।
तेरी अदा से मैं , अपनी क़लम का पहल लिखूँ।
इन होंठों पे जाने कितने थिरकते से अफ़्साने हैं ,
तेर शफ्फाक बदन को मैं , नया ताजमहल लिखूं।
इन ज़ुल्फों को देख , घटाएँ तरस के रह जाती है ,
खुले गेसुओं को अब , बदल का कोई चहल लिखूं।
तेरी बातों से मीठी ,दबी सी , खुशबु आने लगी है ,
सिसकते होंठों के सलवट को , भीनी सी संदल लिखूं।
लब तो चुप है , पर नज़रें तेरी बोललने लगी है अब ,
तेरी ख़ामोशी के , इस नए ज़ेवर को , हलचल लिखूं।
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