कभी-कभी परिस्थितियों को सुलझाते-सुलझाते खींच-तान के उलझा देती हूं। और आख़िर में तंग आकर हार जाती हूं। पर मानती नहीं, फिर उठती हूं और पाती हूं कि मै निपट अकेली नहीं पूरी कायनात लड़ रही है इससे.. आख़िर क्यूं ?? मुठ्ठी भर रौशनी ख़ातिर !
वह बातें जो मुखातिब नहीं होती कद्दावर सी होती हैं रूमानी से ताल्लुक़ात के बावजूद गैर रूमानी होती है आहिस्ते आहिस्ते खोखला कर देती है वो बातें जो कही नहीं जाती स'आदर पन्नों पर लिखी जाती हैं उन पन्नों के कई पन्ने कर राख कर दियें जाते है इस सहूलियत के बाद भी वो तबाह नही होती वो बातें जो कही नहीं जाती "कालजयी होती हैं"
कई मर्तबा मन ना हो तो भी पी लेती हूं..! सच कहूं.. तो मुझे चाय बिल्कुल पसंद नहीं ; पर प्रेम है क्योंकि चाय उसे पसंद है..! उससे प्रेम है शायद इसलिए चाय से भी करती हूं...!!
गहन अंधेरी पहर में शून्य के नीचे चित्त पड़ी हुयी नीरस किन्तु आश्वस्त पराजित सिंघनी-सी टिमटिमाते तारों को ताकते हुए कभी फफक कर कभी सिसक कर निर्झर-निर्झर बहते हुए बिखरे कल को भूल आज को समेटे कल की खूबसूरती को आशाओं की ढेर से सजाती हूं मै अगले ही क्षण खूब जोर से मुस्कुराती हूं ...!!