Kamlesh Simawat   (Kamlesh Sharma)
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Joined 21 July 2018


Joined 21 July 2018
16 APR 2022 AT 13:48

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हें खत्म करने के बाद आदमी कुछ समय तक समझ नहीं पाता कि वह कहाँ है और अब उसे क्या करना चाहिए, इसे अपनी भाषा में अंदर से रिक्त होना कहा जा सकता है। ये कोई प्रेम कहानी नहीं है न ही दोस्ती या जन्मों के वादों की कहानी है। ये उस एक दिन की कहानी है जिसमें बिना कुछ सोचे समझे झुठी कहानी परोस दी जाती है, साथ भी किनका मिलता है जिन पर आप विश्वास करते हैं कि इतनी आत्मीयता वाले रिश्ते भी ऐसे हो सकते हैं । मेरी यह कहानी आपको सोचने पर मजबूर करे या नहीं पर अजनबियों की कितनी अहमियत है जीवन में और साथ ही यह भी कि बिना नाम के रिश्तें कितने आत्मीय हो सकते हैं ॽ

कभी कभी कुछ रिश्ते इस कदर आगे बढ़ जाते हैं कि हर बार मिलने पर उसे रिश्ते में प्रगाढ़ता बढ़ती ही जाती है.

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20 NOV 2021 AT 11:13

मंजिल ए तलाश में घर से दूर निकल जाते हैं
हम भी अपनों के सपने साकार करना चाहते हैं

अदब और सलीके हमे भी आते है
फिर भी न जाने क्यू दूर से ही जज कर लिए जाते हैं

हर किसी से पहली मुलाकात में चेहरे से न जाने क्यू ,
हमारी हैसियत का अंदाजा लगा लिया जाता है

अगर किसी कि तारीफे करे तो कोई कोई पतरा लगता है
और नज़रे फेर लें तो धोकेबाज नजर आते है

हर किसी कि बात को हम भी अच्छे से सुनना आता है
पर काम और भविस्य के बीच के सामंजस्य में कुछ नजरअंदाज करना होता है.

ऐसा नहीं वो अपनों के साथ वक़्त गुज़ारना नहीं चाहता
पर ख्वाहिशों को पूरा करने में, उसका मन तो कही और ही लग जाता है ।

गम पर आंसू आये तो सब छिपा लिया जाता है
और देखावटी हसीं से चेहरे को छिपा लेता है.

रोता नहीं क्योकि दुनिया को कमजोर लगने लगता है
जो भी अपने लिए लव और केयर चाहता है

मर्द भी एक इंसान होते हैं
हमें भी कभी दर्द होता है.....

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9 JAN 2021 AT 16:07

मैं ऐसा नहीं हूं जैसा दिखता हूं सोमवार को,
गर हो फुर्सत देखने का तो मिलो इतवार को ।

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31 DEC 2020 AT 16:24

अलविदा 2020

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30 DEC 2020 AT 18:29

हम रिश्ते नातों पर विश्वास नहीं करते जनाब
हम तो मन के बंधन को ही अपना मान लेते हैं।

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15 DEC 2020 AT 20:36

पहली बार और वो खुशी

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23 OCT 2020 AT 21:24

आज फिर उनकी यादों ने सताया है,
आंधियों जरा रुक के आना,
पहले यादों कि बरसात में भीग जाने दो।

मोबाइल कि घंटियों, वाट्स अप के मैसेजो,
जरा कुछ देर के लिए मौन भी हो जाओ,
हमें फिर से आज उनकी यादों को सिलना हैं।

कुछ देर तो यादों को धड़कन के साथ होने दो,
आज फिर उनकी यादों ने सताया है।।

कानों को उनकी आवाज जी भरकर सुन लेने दो,
अपनी डफ़ली बजाने वालों,
आंखों कि एकटक नजर हटने ना दो,
उनके ही सपनों में खो जाने दो।

फिर से आज उनकी यादों कि माला पिरोने दो,
धड़कनों के साथ यादों को जुड़ने दो,
हां फिर से आज उनकी यादों ने सताया है।।

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3 OCT 2020 AT 16:38

ये दिल है
या.....
स्टेडियम जो हर कोई
आके यहां बैठ रहा है।

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2 OCT 2020 AT 15:52

"अरमान" सिर्फ उतने ही अच्छे है, जिनमें "स्वाभिमान" "गिरवी" रखने की जरूरत ना पड़े ....

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15 SEP 2020 AT 10:30

बहुत लड़ रहा हूँ मैं अपने ही ख़्वाबों से ,
क्यो तुम बेहिसाब याद आते हो ।
हम भुलाते है और वो सपनों में आ जाते हैं।

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