रिश्ता कह देने भर से ही रिश्ता निभा जाते हैं,
केवल एहसासों को ही नई ज़ुबान दे जाते हैं,
बिना कहे ही हर बात दिल की समझ जाते हैं,
इतना कुछ होते हुए भी छोटे ही बने रह जाते हैं।
आज कल सगे भी कहाँ अपने ही हो पाते हैं,
पराये जहाँ परायों को ही अपना बना जाते हैं,
क्या ले दे कर आये थे, क्या ले दे कर जाना है,
बस शब्दों का बोझ भी आसानी से उठा जाते हैं।
ज़िन्दगी जहाँ कहीं इक बोझ सी बस बन जाए,
हम हैं न, बिन कहे ही बस भाव जगा जाते हैं,
असलियत में कितने ही रिश्ते साथ छोड़ जाए,
रिश्तों की नई परिभाषा ही बना जाते हैं।
खून के रिश्ते तो कहाँ साथ ही चल पाते हैं,
ऐसे रिश्तों की सच्चाई तो हम जान ही जाते हैं,
जब बीच राह खून के रिश्ते साथ यों छोड़ जाए,
एहसासों के रिश्ते ही तो उम्रभर साथ चल पाते हैं।
सगे भाइयों से ज़्यादा बहनों का दर्द समझ लेते हैं,
दूर ही सही, निस्वार्थ भाव दिल में जगा ही जाते हैं।
आँधी-तूफ़ान बन कर के भी कभी यों मिल जाते हैं,
राखी का कर्ज़ चुका रक्षाबंधन का अर्थ बता जाते हैं।
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