क्यूँ मैं पैदा हुआ, याद कुछ ना रहा
ये हुई क्यों सज़ा, याद कुछ ना रहा
हमसफ़र भी था मैं, रास्ता भी था मैं
मंज़िलों का पता, याद कुछ ना रहा
बात ईमान की, खूब मैंने पढ़ी
काम खुद का पड़ा, याद कुछ ना रहा
मेरा क़ातिल ही मुंसिफ़ मिला जब मुझे
क्या गुनह था मिरा, याद कुछ ना रहा
रो दिया वो मुझे दे सज़ा मौत की
क्या मैं करता गिला, याद कुछ ना रहा
था गुमाँ ये मुझे, मैं न भूलूंगा कुछ
आ गई जब कज़ा, याद कुछ ना रहा
कल से तौबा करूँगा थी खाई कसम
शाम साक़ी मिला, याद कुछ ना रहा
रात गुज़री कहाँ, उसने पूछा 'असर'
था कोई मयकदा, याद कुछ ना रहा
Hitendra_Asar
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