उस चाँद के रुख़ पे क्या खूब निखार आया है...
चाँदनी रात में छत पे जो मेरा यार आया है....
कल तारों ने हल्के से कहा था मेरे कानों में,
चाँद जलता के उसने ऐसा रूहानी नूर कैसे पाया है...
जब भी उसकी जुल्फें उसके चेहरे पे आती है,
लगता है मानो आसमां में काली घटाओं का साया है...
ये जो उसकी हल्की भूरी आँखों मे काज़ल है ना,
खुदा को रात का ख़्याल भी तो यहीं से आया है...
वो उसके माथे की बिंदी देख रहे हो न ,
तुम्हे पता भी है उसने कितने आशिकों का दिल चुराया है...
उसके कानों के झुमकों से बहुत जलन होती है मुझे,
चूमते रहते है उसके गालों को,कमबख्तों ने क्या किस्मत पाया है..
उसके लबों को देख के ही तो साकी को मय का ख्याल आया था,
उसके एक हँसी से ही तो मौसमों में बहार आया है...
इतने पास हो के भी वो तुझसे कितनी दूर है,
रह भी नही सकते,कह भी नही सकते "अंशु" तूने भी क्या नसीब लिखवाया है...
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