मुँह के बल मेरा कलेजा आ गया ऐ ज़िन्दगी
दुश्मनी है गर तुझे , अब मुस्कुरा ऐ ज़िन्दगी
हाय कितना बढ़ गया है दर्द की चींख़ों का शोर
सुन न पाया, फिर से कहना क्या कहा ऐ ज़िन्दगी
किस लिए पीछे खड़ी है, दुश्मनों का साथ दे
ज़ुल्म कर जी भर के तू भी, दिल दुखा ऐ ज़िंदगी
छोड़ कर हर एक उलझन आ गया हूँ सामने
चल बता अब, क्या है तेरा मसअला ऐ ज़िन्दगी
इतनी शिद्दत से लगाई है ह़कीकत ने रगड़
रेज़ा-रेजा हो गया है आइना ऐ ज़िन्दगी
इस तरह़ हर मसअला ह़ल होने के इमकान हैं
कुछ मेरी सुन, और कुछ अपनी सुना ऐ ज़िन्दगी
क्या ह़क़ीक़त, ख़्वाब तक में भागता रहता हूँ मैं
ह़ाल ऐसा हो गया है देख जा ऐ ज़िन्दगी
क्यों नहीं रुकता है तेरी सर परस्ती में "ह़यात"
चश्म-ए-नम से आँसुओं का सिलसिला ऐ ज़िन्दगी
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