तुम मृत्यु सा अटल नहीं, भीष्म सा दृढ़ बनना
तुम बनना मानस को अमृत, पर पुरुषों में राम नहीं,
तुम कालिदास की शकुंतला नहीं, इलांगो की कन्नगी बनना
ध्वस्त करना हर धारा को जो तुम्हारे प्रेम को रोके
तुम कोई ब्रह्मास्त्र नहीं, शिव का त्रिशूल बनना,
सत, रज और तम से ऊपर, तुम निर्गुण बनना
थाम लेना त्रिशूल पे बसी काशी को,
पर तुम काशी मत बनना
शास्त्रों में बंध जाओगे वरना,
तुम कश्मीर बनना,
जिसने तप देखा है शंकराचार्य का,
जिसके लिए कई युद्ध हुए हैं
मत बनना धारा का अमृत, तुम धारा सा अविरल बनना,
तुम बनना आभा फिर गुण की
तुम उर्मिल लक्षमण की ना बनना
उसको समर्पित जिसका समर्पण किसी और के लिए हो,
मत बनना तुम अथाह समुद्र सा
वरना अपने मैले बोझ से टूट जाओगे,
सावन की फुहार बनना तुम,
क्षणिक और निर्मल तुम निश्छल बनना,
तुम माटी की मूरत नहीं,
खरोंच तुम कोरे शीशे पर बनना
तुम शीशम की डाल नहीं,
तुम साल का पहला पतझड़ बनना,
तुम वो बनना जो कृष्ण का ना हो,
तुम माखन की मिश्री बनना
तुम बनना बस ताप द्रौपदी,
तुम शबरी का बेर ना बनना,
मत बनाना कुंती को माता, पुत्र तुम माया के बनना,
राजा तुम फिर मौर्य से नहीं, सिया पिता श्री जनक से बनना
तुम बनना एकांत निवासी, मत पड़ना जीवों के भव में
तुम अर्जुन का कर्तव्य नहीं, तुम अर्जुन की भक्ति बनना
तुम उसका गांडीव नहीं, तुम पंचतत्व की शक्ति बनना..
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