Harsh Karn   (हर्ष कर्ण)
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Moody, Introvert
Wish me on 12 may🎂
Joined 9 June 2020


Moody, Introvert
Wish me on 12 may🎂
Joined 9 June 2020
1 FEB AT 11:59

कितने दिलों को तोड़ती है कमबख्त फरवरी
यूं ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं

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1 JAN AT 14:08

कुछ बेसब्री कुछ फकाकशी में गुजरेगी
इस साल भी जिंदगी शायरी में गुजरेगी
बाकी के महीनों का ठीक है मगर
अतीत तो फिर भी फ़रवरी में गुजरेगी

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9 JAN 2023 AT 12:21

यूं मुद्दतों बाद दिल–ए–बेचैन को मिली है राहत
किसी ने किया है याद फिर उसी गर्मी–ए–शौक़ से मुझे

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13 DEC 2022 AT 23:39

फिर दिल को दी है तस्सली हमनें आंखों को ख्वाब दिखाया है
फिर वो शख़्स शायरी बनकर मेरे तसव्वुर में आया है
गुलों की रंगत निखर रही है चमन फिर से शादाब हुआ है
मुद्दतों बाद यूँ गर्मी-ए-शौक़ से झूम के सावन आया है
हम हैं बे–हुनर अभी सुखन की नहीं है कोई विरासत अपनी
इश्क़ से हमनें अदना सा ये सुखन का फ़न पाया है
हिज्र,तन्हाई, बेवफ़ाई, रंजिश ये ज़ईफ–कदीम सी बातें है
चलो देखते है बाज़ार में कारोबार नया क्या आया है
कोई अंदाजा भी क्या लगाए विरानियों का मेरी
तन्हाइयों से हमने है बातें करी दीवारों को शे’र सुनाया है
अब तो वो मौजूद नहीं है मुझमें कहीं मगर फिर भी
इक हूक उठी है दफ़अ'तन ये जाने कौन याद आया है
– हर्ष कर्ण



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29 JUL 2021 AT 12:47

आँसु ग़मों को यकसर बहा ले जाती है
हमको उसकी खुशबू हर बार वहाँ ले जाती है
वक़्त पे छोड़ रखा है हमने कारोबार-ए-उल्फ़त
देखते हैं ये आशिक़ी हमको कहाँ ले जाती है
खुद की लड़ाई में खुद से कहाँ जीत सका है कोई
पतझड़ में सूखे पत्तों को हवा उड़ा ले जाती है
कुछ ताल्लुक टूटते हैं,सिलसिला चलता रहता है
फिर भी चलेंगे,ज़िन्दगी अब जहाँ ले जाती है

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26 JUN 2021 AT 11:37

आँखें रोई हैं बेकशी में मगर बदन दर्द से दोहरा न हुआ
एक ख़्वाहिश अधूरी रह गयी,एक किस्सा पूरा न हुआ
आँख लगी ही थी कि दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई
नींद भी अधूरी रह गयी,और ख्वाब भी पूरा न हुआ
रात के सन्नाटो में जुगनू फिर भी मिल जाते हैं
परिंदे मौज़ करते है जंगल में कब से अंधेरा न हुआ
आये दिन तो कई चेहरे मिलते हैं मगर आज भी
उस चेहरे जैसा फिर और कोई चेहरा न हुआ
हमने सफ़र को आहिस्ता किया कि इश्क़ मुकम्मल हो मगर
मोहब्बत भी अधूरी रह गयी और सफ़र भी पूरा न हुआ
हाथों में शुरू से ही हिज़्र की लकीर थी शायद इसलिए
कुछ हम उसके न हुए,और वो भी मेरा न हुआ

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28 MAY 2021 AT 14:57

जो पत्थरों में जुबां ढूंढे हम वो चीज़ है दोस्त
है मर्ज ख़्वाब सजाना तो हम मरीज़ हैं दोस्त
कहानियाँ लिखने दो हमको बहते पानी पर
ये बेवकूफियाँ हमको बहुत अज़ीज़ हैं दोस्त
नसीहतें नहीं सुनते किसी की,न सबक लेते हैं
मैं क्या करूँ मेरे ख्वाब बहुत बदतमीज़ हैं दोस्त

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27 MAY 2021 AT 19:51

कब तक बेख़ुदी रहे,दिल पर इख़्तियार कब तक हो
ये साँसे कब तक चलें, दिल-ए-बेकरार कब तक हो
अब ख़सारे हो रहे हैं रिश्तों में तकल्लुफी से
ज़िन्दगी अज़ाब हो रही,रिश्तों का कारोबार कब तक हो
कोई कद्र भी करे तन्हाइयों का,वीरानियों का
महज़ जीत की खुशी,जश्न-ए-बहार कब तक हो
ज़िन्दगी अज़ाब है ये सब को पता है मगर
कभी सुकून भी मिले,टूटना बार-बार कब तक हो
क्या-क्या करवाती है मोहब्बत,चाहत के ज़ुनून में
बिछड़ने की भी गुंज़ाइश रहे,विसाल-ए-यार कब तक हो
हवाओं उसे भी याद दिलाओ माज़ी के मंज़र की
फ़क़त अकेले ये दिल आखिर सोगवार कब तक हो

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20 MAY 2021 AT 22:03

नहीं जो दिल में जगह तो नज़र में रहने दो
मेरी हयात को अपने असर में रहने दो
ये मंज़िलें तो किसी और का मुक़्क़दर हैं
मुझे बस अपने जुनून के सफ़र में रहने दो

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10 MAY 2021 AT 19:01

ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता
कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीम कश को
ये खलिश कहाँ से होती,जो जिगर के पार होता

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