कब तक बेख़ुदी रहे,दिल पर इख़्तियार कब तक हो
ये साँसे कब तक चलें, दिल-ए-बेकरार कब तक हो
अब ख़सारे हो रहे हैं रिश्तों में तकल्लुफी से
ज़िन्दगी अज़ाब हो रही,रिश्तों का कारोबार कब तक हो
कोई कद्र भी करे तन्हाइयों का,वीरानियों का
महज़ जीत की खुशी,जश्न-ए-बहार कब तक हो
ज़िन्दगी अज़ाब है ये सब को पता है मगर
कभी सुकून भी मिले,टूटना बार-बार कब तक हो
क्या-क्या करवाती है मोहब्बत,चाहत के ज़ुनून में
बिछड़ने की भी गुंज़ाइश रहे,विसाल-ए-यार कब तक हो
हवाओं उसे भी याद दिलाओ माज़ी के मंज़र की
फ़क़त अकेले ये दिल आखिर सोगवार कब तक हो
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