H-Rahul Yaduvanshi   (SimRahi)
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बनाने को जिंदगी , राह में "राही " ....
Joined 11 November 2019


बनाने को जिंदगी , राह में "राही " ....
Joined 11 November 2019
16 MAR AT 22:45

मैं क्यों सोचता हूं की तुम मुझसे बातें करो ,
अगर मैं बता दूं तो तुम रुक जाते क्या ??
अगर बता दिया होता की तुम ही मेरे हंसने की वजह हो , तो तुम रुक जाते क्या ?
बता दिया होता की तुम्हारे अलावा कोई नहीं है मेरे पास बात करने को तो रुक जाते क्या ?
अगर बता दिया होता की मन बहुत करता है तुमसे बातें करने को , तो तुम रुक जाते क्या ?
मोहब्बत की खातिर ही नही , दोस्त के लिए ही सही , तो तुम रुक जाते क्या ?
अगर बता दिया होता की तुम्हारा ये बदला बदलाव मुझे परेशान करता है , तो रुक जाते क्या ?
अगर बता देता की तुम्हारी खातिर रोया हुं मैं , तो तुम रुक जाते क्या ?
अगर बता दिया होता , की मैने दिल के जज़्बात सिर्फ तुम्हारे सामने बयां किए है , तो तुम रुक जाते क्या?
मैने वो बातें भी तुम्हे बताई है , जो मैं डरता था इस जमाने को बताने से , तो तुम रुक जाते क्या ?
अगर कह देता की मेरे हंसने की वजह तुम ही हो , तो तुम रुक जाते क्या ?
अगर मैं कह देता ये सब तो बताओं तुम रुक जाते क्या ??

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13 MAR AT 18:22

मैं लिखूंगा तुम्हें ...
पर सुकून से लिखूंगा ,
एक ग़ज़ल नही , पूरी किताब लिखूंगा ,
पर जब तुम्हारी यादें धुंधली धुंधली सी रहने लगें, तब लिखूंगा ,
तुम्हारा जिक्र किए बगैर तुम्हें लिखूंगा ,
तुम्हारे नाम के पिछे की कहानी लिखूंगा ,
तेरे होने को अहसास लिखूंगा ,
तुम्हें बेवफा नही , हमदम लिखूंगा ,
मेरी इकतरफा मोहब्बत लिखूंगा ,
तुम्हारी दोस्ती के किस्से लिखूंगा ,
तुमसे मिले इश्क में, दर्द के किस्से लिखूंगा ,
तुम्हारे पास वक्त ना होने की बात लिखूंगा ,
तुम्हे राही की जिंदगी का एक हिस्सा लिखूंगा ,
तुम्हारा नाम लिए बगैर तुम्हें लिखूंगा ,
मैं लिखूंगा तुम्हें....
एक ग़ज़ल नही , पूरी किताब लिखूंगा.....

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28 FEB AT 22:23

चलो अच्छा ही हुआ ,
जो तुम मुझे मिले ,
तुम मिले तो कुछ मिला ,
कुछ कुछ मैं खुद से मिला ,
कुछ दुनिया को जाना ,
कुछ तुम्हे है पाना ,
तुम्हे ख्वाबों में बसाकर नींद के आगोश में जाना ,
चलो अच्छा ही हुआ ...

चलो अच्छा ही हुआ जो तुम चले गए ,
तुम तो चले गए बिन बताए , मगर
एक तजुर्बा हुआ ,
जाने की वजह में उलझ कर हम तो रह गए ,उलझी सांसों के संग ,
मगर पहली दफा ,खुद को रोता देखा ,
आइने में अक्श धुंधला सा देखा ,
यू वक्त रुका सा देखा ,
खुद को " राही " हारा हुआ देखा ,

तुम्हे आने , जाने के दरमिया में ,
खुद को खुद से मिला हुआ देखा ,
खुद को किसी की यादों में रोते देखा ,
खुद को तड़पते हुए देखा ,
पहले सदमा लगा , फिर नगमा हुआ ,
खेर चलो अच्छा ही हुआ ,
जो भी हुआ अच्छा ही हुआ ...

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28 FEB AT 21:51

अगर जान लेता मैं इरादे तुम्हारे ,
हार जाता यूं ही करने पर इशारे ,
ये साजिशे ये बाते तो ठीक है ,
पर कत्ल के भी ख्वाब थे तुम्हारे ।

मैं खुशी मैं जान दे दू ,
पर ये बुजदिली मौत ना मरू ,
करू तो मोहब्बत करू ,
वरना दुश्मनी भी न करू ।

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28 FEB AT 21:48

क्या क्या बयां करूं मैं आपके बारे में, मेरे तो लफ्ज़ कम पड़ रहे हैं ,
क्या जिक्र करू मैं उन बातो की, जो मुझे रोने की वजह दे रहें हैं ।

मैं ना समझ सका आपके यूं बदलते हुए बदलाव को ,
आप तो चुपके से बदल गए , हालातों से लड़ना मुझे पड़ रहा है ।

बातो ही बातो मैं कोई फायदा उठाना आपसे सीखे ,
आप तो भोले से बनकर शराफत का फायदा उठा रहे है ।

यू तो आप भी शराफत देखो " राही " की
नंबर है , मगर फिर भी आपके कॉल के इंतज़ार मैं है ।

यूं तो राही भी पहले कॉल कर सकता है ,
मगर तुम्हारे वादे की पहले तुम ना करना , पर अटके हुए है ।

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6 FEB AT 11:29

बातों में अब वो बात नही रही ,
बात होती है ,मगर अब वो पहले वाली बात नही रही ।

तग़ाफ़ुल इस कदर करता है , महबूब मेरा ,
की अब बात शुरू करने को भी बात नही रही ।

यू तो मैं तेरा जिक्र मेरी गजलों में कर जाऊंगा ,
मगर तुझको याद करके अब रोने की हिम्मत नही रही ।

कोई किस्मत वाला ही होगा जो थामेगा तेरा हाथ ,
तुझे मांग भी लू खुदा से मगर अब तू मेरी किस्मत में नही रही ।

वो जो इब्तिदा-ए-सफ़र में कल तेरे मेरे दरमियाँ रहा ,
मुझे इंतिहा - ए - सफर में भी उन्ही सिलसिलों की तलाश रही ।

तेरे संग जिंदगी के हर लम्हे में थी डूबने की आरजू ,
तुझे क्यों लगा मेरे ना -ख़ुदा मुझे साहिलों की तलाश रही ।

मेरे जैसे हजार मिले, मगर तुझ जैसा कोई नहीं ,
वो मेरी आख़िरी मोहब्बत है " राही " उसको ये इल्म  भी नही ।

यूं तो कसमें खा जाते है मोहब्बत में " हीर - रांझा " की ,
मगर " राही " ना तू रांझा बना , ना वो हीर रही ..

यूं तो बात हो जाया करती है , मगर वो बात नही रही ...

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2 FEB AT 21:55

देखो अभी जाने की बात मत करो ,
अभी तो मुलाकात भी ठीक से नही हुई है ...
जरा यहां आओ, कुछ पल पास तो बैठो ,
क्या कहां , तुम्हें मोहब्बत नही करनी आती ,
चलो आओ तुम्हें मोहब्बत सिखाता हूं ,
जब मिली तुम तो सांसे तेज सी होने लगी ,
ठहरी जिन्दगी चलने सी लगी ,
ये गम भरी रातें भी कुछ सुहानी सी लगने लगी ,
ये चांद भी महबूब सा नजर आने लगा ,
तुम्हारे साथ बिता लम्हा भी पल सा लगा ,
क्या कहां मोहब्बत की बातें नही करनी ,जाना है ,
नही यार अभी जाने की बात मत करो ,
अभी तो मोहब्बत की बात भी नहीं हुई है ,
देखो अभी तो मुलाकात भी ठीक से नही हुई है ..

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25 JAN AT 10:47

जिस्म छोड़ चला मैं , रूह मेरी बाकी है ,
हकीकत से हूं रूबरू मगर जन्नत की आस बाकी है ।

खामोश मैं , खामोश रात , खामोश ये चांद है ,
ना जाने हम तीनो को किसका इंतज़ार बाकी है ।

गुजर गई आहिस्ता आहिस्ता ये रात भी ,
मगर देखो ख्वाब मेरा अभी भी बाकी है ।

यू तो ख्वाब कोई बड़ा नहीं तेरी चाहत है ,
तेरे लबों को चूमने की हसरत बाकी है ।

ये जो कुछ दिनों से नजरंदाज कर रहें हो तुम ,
दूर जाना है , या हमारे गुजर जाने का इंतज़ार बाकी है ।

हो कभी हमारी भी मोहब्बत पूरी " राही "
बस अगले जन्म की आस बाकी है ,
जिस्म छोड़ चला मैं , रूह मेरी बाकी है ...

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22 JAN AT 23:02

जब जब इश्क लिखूं , तब तब उसका नाम लिखूं ,
उसकी आखों ही आखों से बात लिखूं ,
या उसके चेहरे का नूर लिखूं ,
मैं लिखूं उसकी मोहब्बत को इश्क के लफ्जों में ,
या रातों को उसका इंतज़ार लिखूं ,
उसके घने जुल्फों के साए को आराम लिखूं ,
या उसके आगोश को सुकुन लिखूं ,
उसके होठों को गुलाब सा लिखूं ,
आखों को मयखाना लिखूं ,
खुद को " राही " मयखाने का कैफ़ी लिखूं ,

मैं जब जब इश्क लिखूं , तब तब उसका नाम लिखूं ।

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30 DEC 2023 AT 21:36

साबित न कर खुद को , जो है बस वही रह ,
अपना हो जो वो अपनों से अंजान नही होता ।

दुनियां के सामने भाई होने का ढोंग ना कर ,
जो मन में है वो हर कोई बाहर नही होता ।

दोपहर तक तो कुछ रुपए नही थे , पास आपके ,
शाम को आए हिसाब पुराना करने , वैसे हिसाब आपका सही नही होता ।

ये जो कुछ रुपए दे रहे हो तोफहा या भीख है ,
वैसे इन चंद रुपए से कोई अमीर नही होता ।

बातों से तू यू बदला ना कर राही हर बात को मजाक का नाम न दे ,
वैसे तुजसे "राही " ये मजाक सुना गया नही होता ।

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