कवयित्री:- कुमारी गरिमा पोयाम
विषय:- कलम (भाग-2)
मैं कलम हूँ,
हर कार्यालय की शान हूँ,
छात्रों की पहचान हूँ।
मुझसे लिखी गई कई किताब,
समझो तो मैं भी हूँ नायाब।
मोरपंख से हुई मेरी शुरुआत,
अब तो टाइपिंग से करते बात।
लेखकों के मन की बात लिख जाती,
शिक्षकों का सम्मान बन जाती।
हर वर्ग को उपलब्ध हूँ,
लिखती मैं ही हर शब्द हूँ।
मुझे बचाओ डिजिटल दुनिया में
खो न जाऊँ,
ऐसा करो विकास की सबके हाथों
में स्वयं को पाऊँ।
हाँ मेरा ही नाम कलम है,
पर आँखें आज मेरी नम है।
क्यूँ?
क्योंकि टाइपिंग का है जमाना,
मुश्किल लगता सबके हाथों में आना।
पत्र भी मुझसे लिखते कहाँ,
मोबाइल संदेश ही छाया यहाँ-वहाँ।
मेरी इच्छा हर हाथों में पाई जाऊँ,
हर किसी के काम मैं आऊँ।
विश्वास यही एक दिन हर हाथ में
आऊँगी,
अपनी प्राचीन पहचान मैं पाऊँगी...।
-कुमारी गरिमा पोयाम
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