नज़र से कुछ पिला मुझे तू फ़ैज़याब कर मुझे
मैं बुझ गया जला मुझे फिर आफ़ताब कर मुझे
तेरी नज़र के हर हुनर की है ख़बर मुझे मगर
दिखा नया हुनर कोई तू ला जवाब कर मुझे
तू नूर की क़िताब है, है लफ़्ज़ लफ़्ज़ नूर तू
तू अपने लफ़्ज़ दे के अपनी सी किताब कर मुझे
हक़ीक़तों में यूँ भी जी नहीं लगे मेरा अभी
बसा ले अपनी आँखों मे तू ख़्वाब ख़्वाब कर मुझे
लगा ली आदतें बुरी ये ताने सुन रहा हूँ मैं
ये बात सच है गर तो फिर तू और ख़राब कर मुझे
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