ना पूछो हाल-ए-दिल ?
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
मंज़िलों से रूबरू ना हुआ मैं कभी !
मुसाफिर हूँ और बस सफर करता हूँ !!
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
ना सोचो मिरे बारे मे तुम मियां इतना !
मैं दिमाग पे असर करता हूँ ?
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
ठोकरों से सीखा है सलीका जीने का मैंने !
कुछ यूं ही हर बात पे खुदको खबर करता हूँ !!
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
नही ताल्लुक ज़िंदगी से अच्छे मेरे !
फकत इसीलिए मौत पे जां-निसार करता हूँ ?
मुझे मुआफ़ करो ! ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
है एक सवाल खुदसे भी मुझको "रुहान" !
हूँ नही काबिल जब मैं ? फिर किस तरह मैं ज़िंदगी बसर करता हूँ ?— % &
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