यदि प्रतिकूल परिस्थितियां हो,
अवसादों की स्थितियां हों।
पग त्राण बना हो विघ्न अगर,
मन हो जाए उद्विघ्न अगर।
तो यह घड़ी नहीं विस्मयों की है,
ये चाल समय हयों की है।
सहसा घिर जाए अंधकार,
बाधाओं का बवंडर अपार।
मन में उठते अनगिन विचार,
निज पौरुष पर करते प्रहार।
तो ये बेला आत्म परिचयों की है,
ये चाल समय हयों की है।
मन करता हो क्षण क्षण छल,
अपर्याप्त लगता हो बल।
बस एक विचार क्या होगा कल,
संसार बना हो समरस्थल।
तब आवश्यकता दृढ़ निश्चयों की है,
ये चाल समय हयों की है।
कोदण्ड अभय,संधान अभय,
इस आयु का बलिदान अभय।
अभिशाप अभय,वरदान अभय,
शक्ति, समर्थ, अभिमान अभय।
ये स्थिति मात्र विजयों की है,
क्या हुआ जो चाल समय हयों की है।
–:DEEPANSHU PARAUHA:–
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