Dwijendra Dwij   (Dwij)
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Joined 26 April 2018


Joined 26 April 2018
6 JUL 2019 AT 15:05

बारात

हिज्र की शादी तन्हाई से जब होगी
सन्नाटे बारात में झूमे गाएँगे
ہجر کی شادی تنہائی سے جب ہوگی
سنا ٹے بارات میں جھومے گائینگے

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2 SEP 2021 AT 21:45

ग़ज़ल संग्रह






Publisher: भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली
18 इंस्टीट्यूशनल एरिया,
लोधी रोड नई दिल्ली-110 003

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24 APR 2021 AT 13:15

गिरहबंद शे'र:
apne hii swaalo.n ke katahre me.n tha varna
*aiy dost! me.n KHaamosh kisii dar se nahii.n thaa*
अपने ही सवालों के कटहरे में था वरना
*"ऐ दोस्त! मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था"*
اپنے ہی سوالوں کے کٹہرے میں تھا ورنہ
"اے دوست! میں خاموش کسی ڈر سے نہیں تھا"

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22 APR 2021 AT 15:21

*चराग़*

चली जो बात चराग़ों का तेल होने की
हमारा ज़िक्र भी आएगा म फ़सानों में

chalii jo baat charaaGo.n ka tel hone kii
hamaara zikr bhii aayegaa un fasaano.n me.n

چلی جو بات چراغوں کا تیل ہونے کی
ہمارا ذِکر بھی آئے گا ان فسانوں میں

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20 MAR 2021 AT 6:56

*म्हाचलियो! किछ अपणिआँ प्हाड़ी भासा दा भी मान करा
लोक भी कर’गे, पैह्ल्लैं अपणी अप्पूँ ता पणछाण करा
म्हारिया बोलिया बिच मठास ऐअसाँ इसा जो अपनाणा
एह कोई घड़ियो गप्प नीं ऐ, इतिहास इसा दा परुआणा
एह भासा ऐ म्हारी सभ्यता, असाँ इसा जो चमकाणा
ग़ज़ल, झँझोट्टी, गीत, सुहाग्गाँ जो इस बिच इक जान करा
लोक भी कर’गे, पैह्ल्लैं अपणी अप्पूँ ता पणछाण करा
’म्हाचलियो! किछ अपणिआँ प्हाड़ी भासा दा सम्मान करा*
**एह धर्ती द्योआँ दी सैल्ले चिट्टे इसा दे हन पर्बत
गोड़ी-काळी चिक्क इसा दी, नदियाँ दे पाणी सर्बत
मँदराँ बज्ज’न संख सह्णाइयाँ, मेळेयाँ बिच बज्जे नौबत
उच्चेयाँ रिह्ड़ेयाँ बाग उगान्दे दिक्खा प्हाड़ियाँ दी हिम्मत
भासा ऐ ताँ म्हाचल भी ऐ, जिंद इस पर कुर्बान करा
लोक भी कर’गे, पैह्ल्लैं अपणी अप्पूँ ता पणछाण करा
म्हाचलियो! किछ अपणिआँ प्हाड़ी भासा दा भी मान करा!**
***महासुई, सिरमौरी, बघाट्टी,क्यूँथळी भी ता प्हाड़ी है
मंडियाळी, चंबियाळी, कहलूरी,काँगड़ी भी ता प्हाड़ी ऐ
नूरपुरे ,ऊन्ने, गगरेट्टे दी बोल्ली भी प्हाड़ी ऐ
इक हन रीत रुआज असाँ दे, भासा म्हारी प्हाड़ी ऐ
‘साग़र’ इसदे सुआस्से तायैं जीवन अपणा दान करा
लोक भी कर’गे, पैह्ल्लैं अपणी अप्पूँ ता पणछाण करा
’म्हाचलियो! किछ अपणिआँ प्हाड़ी भासा दा भी मान करा***

*-स्वर्गीय मनोहर शर्मा साग़र पालमपुरी*

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9 MAR 2021 AT 5:03

girahband sheir

मुश्किल हुआ है भीड़ में ख़ुद को भी ढूँढ़ना
*गुज़री है मुझपे यह भी क़यामत कभी कभी*

مشکل ہوا ہے بھیڑ میں خود کو بھی ڈھونڈھنا
* گزری ہے مُجھ پہ یہ بھي قیامت کبھي کبھي*

mushkil hua hai bheeR me.n KHud ko bhii DHuundhnaa
*guzrii hai mujh pe yeh bhii qayaamat kabhii kabhii*

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23 FEB 2021 AT 10:20

दाँतों में आते ही उसके कट जाने का ख़तरा है
जीभ से हमने सीख लिया है अपनी सीमा में रहना

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9 FEB 2021 AT 7:37

girahband she'r

ये ज़ीस्त दर्द के सहरा में यूँ पिघलती है
*न दिल से आह न लब से दुआ निकलती है*

یہ زیست درد کے صحرا میں یُوں پگھلتی ہے
* نہ دِل سے آہ نہ لب سے دعا نکلتی ہے*

ye zeest dard ke sahra me.n yoo.n pighaltii hai
*na dil se aah na lab se duaa nikaltii hai*

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6 FEB 2021 AT 21:12

Unwaan:: Naseeb

उनका नसीब वो था सब फल उन्होंने खाये
अपना नसीब यह है गुठली को आम कहिये

unkaa naseeb wo thaa sab phal unho.n ne khaaye
apnaa naseeb yah hai guTHalii ko aam kahiye

انکا نصیب وہ تھا سب پھل انہوں نے کھائے
اپنا نصیب یہ ہے گٹھلی کو آم کہیے

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30 JAN 2021 AT 22:15

एक शे'र

रब्त और आहंग हैं गुम ज़िन्दगी के शे’र से
और है ऊला मगर मिसरा-ए-सानी और है
ربط اور آهنگ ہیں گم زِندگی کے شعیر سے
اور ہے اُولا مگر مصرع سانی اور ہے
rabt aur aahang hain gum zindagii ke she'r se
aur hai uulaa magar misra e sanii aur hai

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