"तेरी मोम सी मोहब्ब्त में..."
रौशन है जहां मुझसे, मैं रौशनी का मोहताज हूं l
तेरी मोम सी मोहब्बत में जलता हुआ चराग़ हूं ।।
दाग़दार महफ़िल में , मैं अकेला खड़ा बेदाग हूं ।
जीवन के इस कठिन दौर में,अटल सा वैराग हूं ।।
मुझे सिना है ज़ख्मों को, तेरे दर्द के कांटों से ।
क्योंकि तेरे कांटों में, खिले फूल सा पराग हूं।।
भूल है तेरी जो तू जहनूम को जन्नत समझ रही है।
चार कदम चली नहीं, की ज़मीं को आसमां समझ रही है।।
वक्त है आज तेरा तो कल किसी और का होगा।
यकीनन, गम के अंधेरों से दूर जहान रौशन होगा।।
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