एक जाना पहचाना सा शहर है।
जिसमें अनजाने से हैं लोग,
कुछ चेहरे हैं जिन्हे पहचानती है आँखे।
कुछ लोग हैं अजीज़ जिनका मिलना मानो संजोग,
वो शख्स जो सबसे खास है,उसका आना जैसे
खुशियों का आगाज़ है।
जिसकी गैर मौजूदगी में पूरा शहर लगे वीरान सा,
और मौजूदगी में हर पल सुर और साज़ है।
वो बंद किताब में रखे फूल सा है।
वो नए जमाने में मानो खत सा है,
उसके बारे में और क्या ही कहना।
वो तंग रातों में सुकून सा है।
शाम-ओ-सहर,जिसका खयाल,ज़हन से ना जा सके,
जिसके आने की आहट,ये दिल पहचान सके।
वो बातें करे तो बस सुनने को जी चाहे,
वो ख़ामोश रहे तो जैसे वक्त थम जाए।
वो जो एक वक्त पहले मिला था कभी।
अब मिले तो लगता है कुछ नया सा है,
अलग है थोड़ा अजब भी है।
वो शायरी,वो ग़ज़ल,वो ही कविता का आधार भी है।
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