हर लफ़्ज़ दूसरे लफ़्ज़ को दफ़न किये जा रहा था लफ़्ज़ों के ऊपर लफ़्ज़ जाने कितने लफ़्ज़ किसी ने पूछा लफ़्ज़ से जिस लफ़्ज़ ने तुम्हें दफ़नया उस लफ़्ज़ पे कितने इल्ज़ाम है ?
-किया समझेंगे लफ़्ज़ लफ़्ज़ों की बातें जिन लफ़्ज़ों ने उन्हें दफ़नया
बढ़ गई याद तेरी इस बदलते मौसम में लागाया था जो पोधा महक रहा इन बरसातों में भीग रही तेरी आंखे और बदन मेरा गीला है मन के हर एक कोने में नाम सिर्फ हनिषा है
"ठंडी हवा भीगे मौसम या कुछ कोरे कागज़ है रामा हुआ में ख्वाब में तू तूफानों का आलम है"
दिखती हुई मुस्कुराहट में चुप रहे हज़ारो दुख फुसफुसाते हुए सांप लपट रहे छत्ति में है ये अंजन माया के तोर तरीकों से बिखर रहा टुकड़े में ऑर कह मदारी खुद को हे कट्टपुतली किसी ऑर की ना जनता सक्सियत अपनी फिर रहा खुशियों गलियों में ओर्र पा रहा ये दुख ही दुख