Divyansh Pancholi   (Phoenix_Dev)
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AESTHETE
FITNESS ENTHUSIAST
RETROPHILE
Joined 20 April 2020


AESTHETE
FITNESS ENTHUSIAST
RETROPHILE
Joined 20 April 2020
2 MAY AT 20:54

हर लफ़्ज़ दूसरे लफ़्ज़ को दफ़न किये जा रहा था
लफ़्ज़ों के ऊपर लफ़्ज़ जाने कितने लफ़्ज़
किसी ने पूछा लफ़्ज़ से जिस लफ़्ज़ ने तुम्हें दफ़नया उस लफ़्ज़ पे कितने
इल्ज़ाम है ?

-किया समझेंगे लफ़्ज़ लफ़्ज़ों की बातें जिन लफ़्ज़ों ने उन्हें दफ़नया

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2 MAY AT 20:35

राह राह में देख रहा हूँ मैं अब किस राह को पर देख देख के हर राह में नहीं जा रहा किसी राह पर

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2 MAY AT 20:27

सुलगती हुई आग में धधक रहे किस्से तेरे
बह रही हवाओं में किस्सो की महक
अगर मुकम्मल ना हो सके रिस्ता अपना तो तुम शिकवा ना करना

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2 MAY AT 20:16

वो पल ना मिले उस पल तो उन पलो को अब क्या मांगना
पल पल बह रहे एक नए पल को तो उन पुराने पलो को क्या मांगना
जाने दो उन पलो को अब उन पलो को क्या मांगना

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2 MAY AT 20:04

Your eyes are so purely innocent to this world you can see the innocence in the demons

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2 MAY AT 19:58

उमरो के दरिया में आये है एक पतली सी लकड़ी के सहारे वो लकड़ी भी अब डूबने लगी है

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2 MAY AT 19:32

इश्क़ के कत्ले आमो में मोन शमसान है
शोर गोल सा ये मन चाहता अब इत्मेनान है
राहों मैं भटक राही राहों की राहें
बताओ मेरी भी कोई मंजिल है

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26 APR AT 11:59

बढ़ गई याद तेरी इस बदलते मौसम में
लागाया था जो पोधा महक रहा इन बरसातों में
भीग रही तेरी आंखे और बदन मेरा गीला है
मन के हर एक कोने में नाम सिर्फ हनिषा है

"ठंडी हवा भीगे मौसम या कुछ कोरे कागज़ है
रामा हुआ में ख्वाब में तू तूफानों का आलम है"

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19 APR AT 15:05

दिखती हुई मुस्कुराहट में चुप रहे हज़ारो दुख
फुसफुसाते हुए सांप लपट रहे छत्ति में
है ये अंजन माया के तोर तरीकों से
बिखर रहा टुकड़े में ऑर कह मदारी खुद को
हे कट्टपुतली किसी ऑर की ना जनता सक्सियत अपनी
फिर रहा खुशियों गलियों में ओर्र पा रहा ये दुख ही दुख


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19 APR AT 14:33

भीगती आँखों के तले कुछ बुंदे पहुची होटो पे
बह गए अल्फाज़ इन चीखो में तो मिला मंजिल को सुकून

देखी है मंजिल कभी
या कभी उसे हाथ गवाया है
क्या चांदी से बने मन के चांद को देखा
उसपे ग्रहण लगते हुए

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