Dinesh Dadhichi   (Dinesh Dadhichi)
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Retired Professor, Department of English, Kurukshetra University, Kurukshetra (Haryana)
Joined 13 August 2019


Retired Professor, Department of English, Kurukshetra University, Kurukshetra (Haryana)
Joined 13 August 2019
16 APR AT 16:27

जीवन के इस मोड़ पर करें मार्ग का ध्यान।
होती है आ कर यहां रिश्तों की पहचान।
रिश्तों की पहचान, समझ में आ जाती है।
सच्चाई यह उम्र स्वयं ही दिखलाती है।
कहं 'दधीचि', हैं खेल अनोखे अन्तर्मन के।
खुलते हैं कुछ राज़ अंत में ही जीवन के।

(दिनेश दधीचि)

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9 APR AT 13:51

संघर्ष है, ख़ुशियों का सामान नहीं है।
माना कि मुस्कराना आसान नहीं है।
महकायेगी ये तेरे मन का भी हर इक कोना,
मुस्कान तेरी हम पर एहसान नहीं है!

(दिनेश दधीचि)

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25 MAR AT 16:50

याद रहें जो जीवन भर, ऐसे जीवन में आये लम्हे।
माज़ी की दीवार पे हमने जी भर वही सजाये लम्हे।
यूं तो मेरे दिल में उनकी पूरी भरी हुई एल्बम है,
बेमिसाल हैं उन सब में जो तेरे संग बिताए लम्हे।

(दिनेश दधीचि)

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25 MAR AT 16:48

याद रहें जो जीवन भर, ऐसे जीवन में आये लम्हे।
माज़ी की दीवार पे हमने जी भर वही सजाये लम्हे।
यूं तो मेरे दिल में उनकी पूरी भरी हुई एल्बम है,
बेमिसाल हैं उन सब में जो तेरे संग बिताए लम्हे।

(दिनेश दधीचि)

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28 NOV 2023 AT 13:23

रूमी 
है अमृत प्यार उसका, रोग रहने ही नहीं देता, 
मिलन उसका गुलाबों सा, मगर कांटा नहीं कोई।
वो कहते हैं दिलों के बीच होते हैं दरीचे भी, 
कहां होंगे दरीचे, जब नहीं दीवार ही कोई?

अनु० दिनेश दधीचि

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15 NOV 2023 AT 19:38

मार डाला, नहीं ख़बर अब भी?
बोल, बाक़ी है कुछ कसर अब भी?
बात लटकी अधर में रह जाती,
जो नहीं खोलते अधर अब भी।
दूर जलता है इक दिया तनहा,
कोई लौटा नहीं है घर अब भी।
पालता हूं मैं भूलने का भरम,
भूल पाया नहीं मगर अब भी!

(दिनेश दधीचि)

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12 NOV 2023 AT 9:14

बादल से निकल के आई हुई एक बूंद
हुई है सफल जल के ही कल-कल में।
बत्तियां अनेक, लड़ी एक है प्रकाशमान,
एक ही विद्युत का प्रवाह है सकल में।
सदियों पुराना हो अंधेरा घेरा डाले हुए,
भाग जाता है दिये की रोशनी से पल में।
दीप से जलाएं दीप, देखते ही देखते यूं
रमे हों 'दधीचि' उत्सवों की हलचल में!

(दिनेश दधीचि)

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26 OCT 2023 AT 21:53

"ख़ुदबख़ुद फैलती है दुनिया में
प्यार के हाव-भाव की ख़ुशबू ।

रख सकेंगे छुपा के कब तक हम
तेरे-मेरे जुड़ाव की ख़ुशबू?

साथ तेरा है ख़ुशनुमा जैसे
सर्दियों में अलाव की ख़ुशबू ।

ज़िंदगी भर भुला न पाओगे
प्यार के पहले चाव की ख़ुशबू ।"
(दिनेश दधीचि)

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22 OCT 2023 AT 18:15

चाहे जैसे भी हो पाये, एहसास को ज़िंदा रखना तुम।

दूरी में भी नज़दीकी के आभास को ज़िंदा रखना तुम।

हर आने वाला पल माज़ी का हिस्सा बनता जाता है,

बेहतर भविष्य जो चाहो, तो इतिहास को ज़िंदा रखना तुम।

(दिनेश दधीचि)

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22 OCT 2023 AT 16:09

मनजीत भोला की एक पंक्ति से प्रेरित:

"शाम ढलते वो थकी हारी सी फिर आई है घर।
काम से लौटी है वो या लौट आई काम पर?
है जुटी वो काम में या जुत गई कोल्हू में वो,
कौन सी मंज़िल पे पहुंचाएगा उसको ये सफ़र?"

(दिनेश दधीचि)

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