जीवन के इस मोड़ पर करें मार्ग का ध्यान। होती है आ कर यहां रिश्तों की पहचान। रिश्तों की पहचान, समझ में आ जाती है। सच्चाई यह उम्र स्वयं ही दिखलाती है। कहं 'दधीचि', हैं खेल अनोखे अन्तर्मन के। खुलते हैं कुछ राज़ अंत में ही जीवन के।
याद रहें जो जीवन भर, ऐसे जीवन में आये लम्हे। माज़ी की दीवार पे हमने जी भर वही सजाये लम्हे। यूं तो मेरे दिल में उनकी पूरी भरी हुई एल्बम है, बेमिसाल हैं उन सब में जो तेरे संग बिताए लम्हे।
याद रहें जो जीवन भर, ऐसे जीवन में आये लम्हे। माज़ी की दीवार पे हमने जी भर वही सजाये लम्हे। यूं तो मेरे दिल में उनकी पूरी भरी हुई एल्बम है, बेमिसाल हैं उन सब में जो तेरे संग बिताए लम्हे।
रूमी है अमृत प्यार उसका, रोग रहने ही नहीं देता, मिलन उसका गुलाबों सा, मगर कांटा नहीं कोई। वो कहते हैं दिलों के बीच होते हैं दरीचे भी, कहां होंगे दरीचे, जब नहीं दीवार ही कोई?
मार डाला, नहीं ख़बर अब भी? बोल, बाक़ी है कुछ कसर अब भी? बात लटकी अधर में रह जाती, जो नहीं खोलते अधर अब भी। दूर जलता है इक दिया तनहा, कोई लौटा नहीं है घर अब भी। पालता हूं मैं भूलने का भरम, भूल पाया नहीं मगर अब भी!
बादल से निकल के आई हुई एक बूंद हुई है सफल जल के ही कल-कल में। बत्तियां अनेक, लड़ी एक है प्रकाशमान, एक ही विद्युत का प्रवाह है सकल में। सदियों पुराना हो अंधेरा घेरा डाले हुए, भाग जाता है दिये की रोशनी से पल में। दीप से जलाएं दीप, देखते ही देखते यूं रमे हों 'दधीचि' उत्सवों की हलचल में!
"शाम ढलते वो थकी हारी सी फिर आई है घर। काम से लौटी है वो या लौट आई काम पर? है जुटी वो काम में या जुत गई कोल्हू में वो, कौन सी मंज़िल पे पहुंचाएगा उसको ये सफ़र?"