जाने कितनी कविताएं रही होंगी मेरी जिन्हें कागज-कलम नसीब नहीं हुआ वे रह गई केवल मेरे मन मस्तिष्क में ना ही मैंने उन्हें किसी से साझा किया सुनो, तुम मेरी उन्ही कविताओं की तरह हो
कुछ सपने देखे जाए कुछ वादे निभाएं जाए कुछ शिकायतें भी हो दरमियान थोड़ी नाराजगी भी जताई जाए प्रेम किया जाए तो ऐसे किया जाए शब्दों की जरूरत ना पड़े उसमें केवल निभाया जाए कुछ इस तरह "मेरा" और "तुम्हारा" सफ़र सोचो अगर "हम" पर खत्म हो जाए