शोर करती आँधियों में शांत है जो, पर्वतों की चोटियों पर वो खड़ा है, झरनों के गिरते हुए पानी में भी है, और समुंदर की अनंत गहराइयों में, हद यही है कि वो हद से भी है आगे, इस धरा की सोंधी खुशबू में बसा है, तोड़कर लाते हो गुल तुम जिस चमन से, उस चमन के फूल में वो ही सज़ा है ||
मुझे रस्ते पर खड़ा देख, हटाने निकली किसी तिनके की तरह ज़द में उड़ाने निकली मैं तो पहले ही लुटा बैठा ज़िंदगी अपनी आँधियों को भी शौक है मुझे मिटाने निकली...