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अनकहे अवसादों का फ़लसफ़ा

#calmkaziperforms for a preview of my works
Joined 6 September 2016


अनकहे अवसादों का फ़लसफ़ा

#calmkaziperforms for a preview of my works
Joined 6 September 2016
19 JAN 2023 AT 1:04

हम उस बदी के फ़लसफ़े
जो तिश्नगी से चल हुए
क्या भूख, प्यास का धुआँ
सब जंग से हुआ फ़ना
अब तुम ये क्यों फिर कहते हो
“लड़ो नहीं बड़े बनो”
हम है अड़े तो हैं बड़े
सब भूखों की मज़ार में
हम ढाल बन हुए खड़े

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2 JUL 2022 AT 15:46

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23 JUN 2022 AT 10:41

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30 MAY 2022 AT 19:57

एक मजलिस है दर्द और दिल का,
बेक़शी में ख़ुशी अन्दाज़-ए-अय्यारी दिखाती है


I am feeling sad

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27 DEC 2018 AT 15:01

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16 FEB 2017 AT 1:05

चपल, चंचल, चिंतामणि, जिसकी लेखनी न शर्माती ।
इलाहाबाद में बीता बचपन, जयपुर में अल्हड़ घूमें ।
पुणे में इंसान बने, परदेस में साहब हुए ।
दूर रहकर मिट्टी से थोड़ा कुछ जो सीखा,
पन्नों में ही रह जाता था सरीखा ।
कॉमिक और फिल्मों का प्यार न छूटा,
फिर एक दिन YQ का छींका फूटा ।
सोते शायर ने करवट ली ।
लेखनी फिर बोल पड़ी ।
आज कुछ महीने हो चले हैं ।
अभी भी हम तो बस कह रहे हैं ।।

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3 FEB 2017 AT 0:11

दादा,

पिछली बार चिट्ठी में माँ से तुम्हारा ख्याल पूछा था । अपनी बातचीत कम होती है । पर जितनी होती है बढ़िया ही होती है । काम की बात समझ लेते हो आप । वही ज़रूरी है । बचपन से काफी खुराफात साथ में की है । आज ये खुराफ़ात अकेले करूँगा । याद रखने को है बहुत कुछ । पर दुगुना लिख दूंगा । यादें बयाँ कर देता । पर अपने दुनिया भर के जुगाड़ कैसे बताऊंगा ?

एक तो तुम्हारी पुरानी किताबें पढ़ने की आदत हो गयी थी । कभी कॉलेज में नयी किताब ही नहीं ली । सब सेकंड हैंड क्योंकि नयी किताब पढ़ते ही नहीं हम । फिर अपने अंदरूनी मज़ाक समझ नहीं सकते लोगों को, क्योंकि हँसी नहीं रुकती । एक बात और बोलूँगा, अभी कुछ समय पहले समझ आयी है । तुम्हारे क्लास में अव्वल आने पर मैं खुश होता था । इसलिए नहीं के नयी किताबें आएँगी घर, बल्कि इसलिए के अब और बहुत कुछ सीखने को मिलेगा । अगर मैं कहीं रुक गया, थम गया, तो भाई है मेरा ! अव्वल आया है ! वही सब सम्हाल लेगा । आज लिखना रुका नहीं है, क्योंकि आपकी कुंजियों ने हाथ पकड़ कर कलम घिसना सिखा दिया । ये जो समझदारी है वो भी आप ही से सीखी है, और बेवकूफी भी ।

२ साल से स्काइप पर ही ज़्यादा बातचीत होती है । आप पर गुस्सा भी आप ही का सोच कर करता हूँ । बचपन से दादा बुला रहा हूँ आगे भी वही बुलाऊँगा । बस एक दिन मैं भी इतना समझदार हो जाऊँ के कोई मेरी ख़ुशी में इतना ही खुश हो ।

तुम्हारा भाई,

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29 OCT 2016 AT 13:07

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19 OCT 2016 AT 23:12

Writer - One who writes on love

Poet - One who writes with love

Love - The one who writes

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30 SEP 2016 AT 0:29

ज़िन्दगी के पन्नों से
एक जज़्बा समेट लो अगर
उड़ने को यही है काफ़ी

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