मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना......
फूलों की पंखुरी में जो खुद मिट कर छोड़ जाती बीज नवजीवन के लिए,
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना....
पिंजरे के पंछी में जो कैद होकर भी प्रयासरत है सदैव भरने को आकुल उड़ान,
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना........
मेंहदी की पत्तियों में जो खुद मिट कर रंग जाती है जीवन दूजों का,
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना.....
लोहे की फितरत में जो तपकर और चोट खाकर बन जाता है और काबिल,
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना....
आँगन की तुलसी में जिसे मकान में जगह तो मिली पर घर में नहीं,
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना.......
त्याग बलिदान स्नेह की हर सूरत में,
हर स्वाभिमान, मजबूती, दृढ़ता हौसलों की सीरत में,
मैं नारी हूँ मैं अक्श देखती हूँ अपना.....
लक्ष्मी, सरस्वती, अनपूर्णा, सीता की सौम्य मूरत में,
दुर्गा, काली, चंडी की प्रचंड फितरत में।।
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