"आदत"
आदत है उसकी, बात बात पे मचलने की
आदत है मेरी भी, उसकी इस अदा पे फिसलने की
वो दिन कहे तो दिन कहूँ, वो रात कहे तो रात
आदत जो है मेरी, उसके इशारों पे चलने की
पानी कहाँ कभी अपना रंग बदलता है
आदत तो रंगों की है, उसमें घुलने की
अंधेरा कब कहता है कि मुझे याद करो
आदत तो सूरज की है, हर शाम ढलने की
पत्ते कहाँ चाहते हैं, पेड़ से जुदा होना
आदत तो मौसम की है, इस तरह बदलने की
ग़म तो छुपा लिए जाते हैं, मुस्कुराहट के पीछे
आदत तो आंसू की है, आंख से निकलने की
ये इश्क़ कहाँ देखता है ऊँच-नीच,जात-धर्म
आदत तो इज़्ज़त की है, मिट्टी में मिलने की
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