रोजगार से बेरोजगारी तक की सफर में,
मूझे कूछ- कूछ समझ में आने लगी थी,
दूनिया से ज्यादा, आपको घर वालों
को या रिश्तेदारों की पहचानने
का एक मौका मिलता है,
घर का आचरण और व्यवहार
भी आपको समझ में आने लगती है,
दोस्तों की दोस्ती भी आपको समझ आने लगती है,
पढ़ाई का एहसास और औदों की ताकत का अंदाजा
आपको समझ आने लगती है,
बूजर्ग होने पर वो क्यों चिल्लाने लगते हैं,
ये, भी आपको समझ में आने लगती है,
पैसें ही सब कूछ होते हैं, ये, भी आपको समझ में आने लगती है,
घर की हालत और अपनी नीजीं जिंदगी में कूछ तो कमी है,
अब आपको समझ आने लगती है,
किसी का हाथ पकड़कर चलना आपको अच्छी लगने लगती है,
कुछ उम्मीद और सपने सजने लगते हैं, लेकिन
पैसें बिना कूछ नहीं हो सकता ,ये
अब आपको समझ आने लगती है,
आपको अपनी पूरानी यादें या पूरानी जिंदगी में
फिर से जाने की इच्छा होने लगती है,
तब आपको समझ आने लगती है,
वो दूबारा नहीं मिल सकती है, दू:ख , यातनाएं, दर्द और पिडां ,बस ये अपने लगते हैं,
मूस्कूराहट हो सकती है, हमारी लेकिन हंसी नहीं
ये मूंझे समझ आने लगी थी, और
अब पैसे से सब हो सकता है, ये मूंझे समझ आने लगी है,
सब कूछ समझ में आने लगी है,(२)..।
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