मंद आँच पर धीमे-धीमे जितना पकते हैं रिश्ते भी फिर चाय के जैसे खूब महकते हैं।। -
मंद आँच पर धीमे-धीमे जितना पकते हैं रिश्ते भी फिर चाय के जैसे खूब महकते हैं।।
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अंतर्मन की सैर पर, निकलो सच के पाँव। निश्चय ही मिल जाएगी,सुख की ठंडी छांव।। -
अंतर्मन की सैर पर, निकलो सच के पाँव। निश्चय ही मिल जाएगी,सुख की ठंडी छांव।।
बोये बीज बबूल तो, मिलें खार ही खार।फल मिलता सबको यहाँ, कर्मों के अनुसार।। -
बोये बीज बबूल तो, मिलें खार ही खार।फल मिलता सबको यहाँ, कर्मों के अनुसार।।
को समझ सका है कौन------मौन , मौन बस मौन। -
को समझ सका है कौन------मौन , मौन बस मौन।
मुझको आदत नहीं निज दर्द बताने की,मैं हर नब्ज़ समझती हूँ इस जमाने की।रहेंगें ढके घाव खुदबखुद भर जायेंगें,दिखाकर, न मोहलत दूँ नमक लगाने की।। -
मुझको आदत नहीं निज दर्द बताने की,मैं हर नब्ज़ समझती हूँ इस जमाने की।रहेंगें ढके घाव खुदबखुद भर जायेंगें,दिखाकर, न मोहलत दूँ नमक लगाने की।।
गले लगाकर मुझको वो सारे दुख हर लेती है,ना जाने ऐसा जादू माँ🧝🏼♀️कैसे कर लेती है। -
गले लगाकर मुझको वो सारे दुख हर लेती है,ना जाने ऐसा जादू माँ🧝🏼♀️कैसे कर लेती है।
महक रहा है पन्ना पन्ना मेरे दिल की किताब का,हर पन्ने पर लिखा हुआ है अक्षर तेरे नाम का। -
महक रहा है पन्ना पन्ना मेरे दिल की किताब का,हर पन्ने पर लिखा हुआ है अक्षर तेरे नाम का।
लो तुमने की गुजारिश तो बड़े हो गए हम,सम्मुख रक़ीब के अदब से खड़े हो गए हम।मुख में राम औऱ रखते बगल में छुरा,ऐसे लोगों से कबके परे हो गये हम।तपे बेहिसाब पीड़ा की अग्नि में नाज़,तो कुंदन के जैसे खरे हो गये हम।। -
लो तुमने की गुजारिश तो बड़े हो गए हम,सम्मुख रक़ीब के अदब से खड़े हो गए हम।मुख में राम औऱ रखते बगल में छुरा,ऐसे लोगों से कबके परे हो गये हम।तपे बेहिसाब पीड़ा की अग्नि में नाज़,तो कुंदन के जैसे खरे हो गये हम।।
`मैं हूँ खुशनसीब गृहणी' का ख़ुमार उतर जाता है,जो किसी रोज़ भोजन में नमक तेज पड़ जाता है। -
`मैं हूँ खुशनसीब गृहणी' का ख़ुमार उतर जाता है,जो किसी रोज़ भोजन में नमक तेज पड़ जाता है।
फूल की तरह खूबसूरत हर रिश्ता नहीं होता।मात-पिता से बढ़कर कोई फरिश्ता नहीं होता। -
फूल की तरह खूबसूरत हर रिश्ता नहीं होता।मात-पिता से बढ़कर कोई फरिश्ता नहीं होता।