ayush jain   (Ayush jain's poetry)
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Joined 9 September 2019


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Joined 9 September 2019
19 JAN 2023 AT 21:14

पिता के लिए..

कैसे भी हो हालात कभी डरने नहीं देता...
और ख्वाहिशें कितनी भी हो मेरी कभी मरने नहीं देता..

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27 DEC 2022 AT 19:10

वो मेरा ख्वाब अपनी आँखों में लगाए बैठे है,,हम इसी बात पे आस लगाए बैठे हैं..

और ये सच है कि हमने जिंदगी में कुछ ज्यादा नहीं कमाया,,पर जितना कमाया सब इसी पे लगाए बैठे हैं

देखो कितना गुरूर है उन्हें अपनी खूबसूरती पर आज भी,ज़ालिम अपने हुस्न पे काला निशान लगाए बेठे हैं..

कुछ पल के लिए उन्हें सीने से क्या लगाया हमने, यू समझो कि मौत को गले लगाए बेठे हैं..

वो तो मेरा इश्क इजाज़त नहीं देता मुझे, वरना हम भी कमर में खंजर लगाए बेठे हैं..

और देखना है ये ज़हर भी असर करेगा या नहीं, हम होठों से जाम लगाए बैठे हैं..

और मैंने ग़ज़ल में ये कुछ जो केह दिया, वो इतनी सी बात को दिल से लगाए बैठे हैं..

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25 DEC 2022 AT 21:07

मत पूछो दोस्त मुझसे तबीयत मेरी- बस यू समझ लो कि अच्छी नहीं है..
कल देखा था मैंने उसे किसी गैर के साथ-कोई तो कह दे ये बात सच्ची नहीं है..
और दर्द देने को मज़ाक बताया करती है, अबे यार तू इतनी भी बच्ची नहीं है..
मेरे अलावा कोई बेवफा नहीं कहेगा उसको- देखो यार ये बात अच्छी नहीं है..

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22 DEC 2022 AT 18:41

अगर जेहन में कभी कोई आए तो उसे याद ही किया जाए,,
मुनासिब यही होगा कि उसका नाम ना लिया जाए..

पिलाना है हमको अगर तो क्यूँ ना ज़हर ही दिया जाए,,
मुनासिब यही होगा कि उसका नाम ना लिया जाए..

और मानते है खूबसूरत है महबूब तुम्हारा भी,,
मगर देखो गुरूर इतना भी ना किया जाए,,
मुनासिब यही होगा कि उसका नाम ना लिया जाए..

और जो छोर गया था मुझे वास्ता खुदा का दे कर,,
क्यूँ ना उसे वास्ता फिर खुदा का दिया जाए..
मुनासिब यही होगा कि उसका नाम ना लिया जाए..

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21 DEC 2022 AT 10:32

फिर से तेरी याद और ये दिसम्बर..
फिर वही हालात और ये दिसम्बर..
बाहों में तेरी जो पल भर मे गुजर जाया करती थी..
कैसे काटू तन्हा ये रात और ये दिसम्बर..

उसके हर हर्फ में बस फिक्र हुआ करती थी मेरी..
कैसे भुला दू हर बात और ये दिसम्बर..

मुझे देखते ही वो नज़रे झुकाना और सहम जाना तेरा..
कैसे भुलाउ वो मुलाकात और ये दिसम्बर..

हाथों कि लकीरें बताती है कि तू किस्मत में नहीं मेरी..
बस तभी से कोस रहा हूँ ये हाथ और ये दिसम्बर..

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13 OCT 2020 AT 13:12

(तेरा आना बाकी है)

वो ही मैख़ाना वो ही शराब वो ही पुराना साकी है,देख सजी है महफिल हसीं, बस तेरा आना बाकी है।

खोए जो तसव्वुर मे तेरे दिखि ये कैसी झांकी है, कंगन बिंदिया सब है यहाँ, बस तेरा आना बाकी है।

धड़कन रुकी सांसे रुकी ये जिस्म जलाना बाकी है, रो रहे हैं दुश्मन भी खड़े, बस तेरा आना बाकी है।

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6 OCT 2020 AT 20:52

क्या बताऊँ कि कैसे दौर से गुज़रा हूँ, मैं सन्नाटे मे शौर से गुज़रा हूँ..
उसने बिछाई थी तमाम खुशियाँ रास्ते मे मेरे,मलाल है उसे मै कहीं और से गुज़रा हूँ..

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9 SEP 2020 AT 11:42

ISHQ KIYA HAI..

Hum b likhte the sheeshe se mehboob ka naam in hatho par,fir lahu se in zakhmo ko siya h..(ha mene bhi ishq kiya h)

Suna h log mekhane me misaale dete h tumhare peene ki,ye btao kabhi judai ka ashq piya h...(ha mene bhi ishq kiya h)

Or jo hui thi mohobbat me dilo ki adla bdli kabhii,wo to le gye mgr humne apna dil vapas kaha liya h...(ha mene bhi ishq kiya h)..

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12 JUL 2020 AT 15:55

dekho yaha koi nahi rehta ab,tum apne ghar kyu nahi jaate..
or jab tumne keh hi diya ki mar gaye hum tumhare liye,to bhala hum mar Kyu nahi jaate..

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10 JUL 2020 AT 14:23

जो गुज़ारी जिंदगी मोहब्बत में,वो जमाने वापस नहीं आते..
एक दफा चूमी थी उसने प्यार से ऑखे मेरी,अब उसे याद भी करू तो आंसू नहीं आते।

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