वो भी क्या दिन थे,
न दुनियां की परवाह, न कल की फ़िक्र,
न पढ़ाई की चिंता, न फेल होने का डर।
वो भी क्या दिन थे
दोस्तो के साथ दिन भर घूमना,
घंटो बातें करना, बागों में आम खाना
वहीं दोस्तो की महफ़िल जमाना
वो भी क्या दिन थे
स्कूल में कांड कोई हो,
नाम सिर्फ हम दोस्तो का हो।
छोटी छोटी बातों पर लड़ना झगड़ना
और अगले ही पल सब भूल जाना।
वो क्लास के लिए झगड़ना,
वो दोस्तो के साथ मिलकर लड़कियों का मज़ाक बनाना।
वो क्लास का मॉनिटर बनकर सब पर धौस जमाना।
दीदी की पिटाई से बचने के लिए झूठे मूठे बहाने बनाना।
वो दीदी की डांट, कंप्यूटर की क्लास
स्काउट की परेड, क्लास की वो बेंच
26 जनवरी की तैयारी, वो दोस्तो की यारी
बहुत याद आते है बचपन के वो दिन।
कभी कभी सोचते है,
ज़िन्दगी की तलाश में कहां खो गए हम,
आखिर इतनी जल्दी बड़े क्यों हो गए हम।
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