उसने खुलकर कुछ बोला ही नहीं,..धोखा भी धोखे से दिया उसने... -
उसने खुलकर कुछ बोला ही नहीं,..धोखा भी धोखे से दिया उसने...
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अहद-ए-वफ़ा सुनाऊं अब मैं किसको ?‘वत्स’ ये ख़ुदाई दिखाऊं अब मैं किसको ?जिन्हें ये वहमवो कभी सोए नहीं हैंख़्वाबीदा बस्ती में जगाऊं अब मैं किसको ? -
अहद-ए-वफ़ा सुनाऊं अब मैं किसको ?‘वत्स’ ये ख़ुदाई दिखाऊं अब मैं किसको ?जिन्हें ये वहमवो कभी सोए नहीं हैंख़्वाबीदा बस्ती में जगाऊं अब मैं किसको ?
जलते थे जहां सपने,शहरी मसान थे महंगी तराशी के,खोखले मकान थेवो बस फूलों से,हमारा हाल पूछते रहेहमारे जिस़्म पर,कांटों के निशान थे -
जलते थे जहां सपने,शहरी मसान थे महंगी तराशी के,खोखले मकान थेवो बस फूलों से,हमारा हाल पूछते रहेहमारे जिस़्म पर,कांटों के निशान थे
ख़ून आँखों में लिए,बवंडर टाल आया हूँ उस साल खोया जो,इस साल आया हूँ,बड़ी हिम्मत से,अपनी मौत पे रो पाया मैंछुपके,दर्द तन्हाई ज़नाजे में डाल आया हूँ -
ख़ून आँखों में लिए,बवंडर टाल आया हूँ उस साल खोया जो,इस साल आया हूँ,बड़ी हिम्मत से,अपनी मौत पे रो पाया मैंछुपके,दर्द तन्हाई ज़नाजे में डाल आया हूँ
खिलौनों की बस्ती दूर से चमकतीकोई जाके इनके झूठे पर्दे हटाओनंगी है दुनिया,खुरदुरे सब चेहरेढॉंक दो इसे,फिर चादर बिछाओ -
खिलौनों की बस्ती दूर से चमकतीकोई जाके इनके झूठे पर्दे हटाओनंगी है दुनिया,खुरदुरे सब चेहरेढॉंक दो इसे,फिर चादर बिछाओ
चढ़ती सीढ़ीयों पर अनजान गया उतरते उतरते सब जान गया.. -
चढ़ती सीढ़ीयों पर अनजान गया उतरते उतरते सब जान गया..
इस रब्त में जो रंग भरना चाहते थेहममें तुममें फर्क करना चाहते थे,हर तवक़्कुफ़ में जो घूरते थे निगाहेंमुमकिन है हद से गुजरना चाहते थे. -
इस रब्त में जो रंग भरना चाहते थेहममें तुममें फर्क करना चाहते थे,हर तवक़्कुफ़ में जो घूरते थे निगाहेंमुमकिन है हद से गुजरना चाहते थे.
थी ख़्वाब की जो ख़ुमारी सवेरों मेंलौट आइ फिरसे तन्हाई अंधेरों मेंक्यों लुट रहे थे ये ज़न्नत के दरिचेजान पाता कैसे कोई उन लुटेरों में -
थी ख़्वाब की जो ख़ुमारी सवेरों मेंलौट आइ फिरसे तन्हाई अंधेरों मेंक्यों लुट रहे थे ये ज़न्नत के दरिचेजान पाता कैसे कोई उन लुटेरों में
हां फ़िर,उसी अदा से कज़ा दीजिएबहारों को आ जाने की,वजह दीजिए..मैंने चुराया वो सब,जो भी मुमकिन था कम से कम,उम्र कैद की सज़ा दीजिए -
हां फ़िर,उसी अदा से कज़ा दीजिएबहारों को आ जाने की,वजह दीजिए..मैंने चुराया वो सब,जो भी मुमकिन था कम से कम,उम्र कैद की सज़ा दीजिए
घूरती ऑंखो में हंसी,तंज की ठिठोली है अमानत थोड़ी है,जो किसी की हो ली है,उनकी रूह में भी छोड़ आया हूँ ख़ुदको अभी लब्ज़ बोले हैं,मोहब्बत कहॉं बोली है -
घूरती ऑंखो में हंसी,तंज की ठिठोली है अमानत थोड़ी है,जो किसी की हो ली है,उनकी रूह में भी छोड़ आया हूँ ख़ुदको अभी लब्ज़ बोले हैं,मोहब्बत कहॉं बोली है