ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं रही मैं चाहता हुँ मुझ को मार दे [पूरी गज़ल कैप्शन में ] -
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं रही मैं चाहता हुँ मुझ को मार दे [पूरी गज़ल कैप्शन में ]
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सुनने को हज़ार राग थे परन्तु तेरे ना के अलावा कुछ न सुन पाये[पूरी गज़ल कैप्शन में ] -
सुनने को हज़ार राग थे परन्तु तेरे ना के अलावा कुछ न सुन पाये[पूरी गज़ल कैप्शन में ]
तुम नहीं देख पाई आँखों की विवशता तुम देख ही नहीं पाये हिस्से के छाले तुमने देखे बस सुकूँ की बाहें तुम देख ही नहीं पाए हृदय के जाले -
तुम नहीं देख पाई आँखों की विवशता तुम देख ही नहीं पाये हिस्से के छाले तुमने देखे बस सुकूँ की बाहें तुम देख ही नहीं पाए हृदय के जाले
नई रौशनी नई हरकत करती है वो मिलती भी है तो ख़ुद को अफसर कहती है सफ़र-ए-इश्क़ अपना भी अधूरा रहा अब बस सोच में मोहब्बत मुझको तर करती है -
नई रौशनी नई हरकत करती है वो मिलती भी है तो ख़ुद को अफसर कहती है सफ़र-ए-इश्क़ अपना भी अधूरा रहा अब बस सोच में मोहब्बत मुझको तर करती है
आप ये न सोचिए की मैं भूल जाऊँगा डर कर दुनियाँ से छुप जाऊँगा[पूरी गज़ल कैप्शन में ] -
आप ये न सोचिए की मैं भूल जाऊँगा डर कर दुनियाँ से छुप जाऊँगा[पूरी गज़ल कैप्शन में ]
रोज़ देखता हुँ आपको उगते चाँद की तरह जैसे जाता मजदूर देखता है गाँव की तरफ[पूरी गज़ल कैप्शन में ] -
रोज़ देखता हुँ आपको उगते चाँद की तरह जैसे जाता मजदूर देखता है गाँव की तरफ[पूरी गज़ल कैप्शन में ]
प्रियतम हो प्रेम के खातिर प्रेम में ना नहीं लाना हामी जब दुनियाँ की हो तो यूँ छोड़कर मत जाना उम्मीद खड़ी है तुम से तुम उम्मीद बढ़ा कर मत जाना प्रेम के खातिर प्रेम बना है प्रेम छोड़ कर मत जाना यूँ तो लाख रवाँ मिलेंगे धरा से कई जवाँ मिलेंगे रूप रंग अतरंग जमीं पे सजी सही हवा मिलेंगे पर प्रेम रूप को मत खोना स्नेह स्वरुप को मत होना लाख बुरा किस्मत तो क्या किस्मत खातिर मत रोना -
प्रियतम हो प्रेम के खातिर प्रेम में ना नहीं लाना हामी जब दुनियाँ की हो तो यूँ छोड़कर मत जाना उम्मीद खड़ी है तुम से तुम उम्मीद बढ़ा कर मत जाना प्रेम के खातिर प्रेम बना है प्रेम छोड़ कर मत जाना यूँ तो लाख रवाँ मिलेंगे धरा से कई जवाँ मिलेंगे रूप रंग अतरंग जमीं पे सजी सही हवा मिलेंगे पर प्रेम रूप को मत खोना स्नेह स्वरुप को मत होना लाख बुरा किस्मत तो क्या किस्मत खातिर मत रोना
पहले चाँद को चाँद ही समझता था मगर अब उसको पत्थर समझने लगा हूँ -
पहले चाँद को चाँद ही समझता था मगर अब उसको पत्थर समझने लगा हूँ
मैं अपनी तस्वीर को भूलने लगा हूँ सिद्दत की चाह से रूठने लगा हूँ[पूरी गज़ल कैप्शन में ] -
मैं अपनी तस्वीर को भूलने लगा हूँ सिद्दत की चाह से रूठने लगा हूँ[पूरी गज़ल कैप्शन में ]
अब और कितने करीब से हारूंगा अब और कितने तार तार करेगी तु -
अब और कितने करीब से हारूंगा अब और कितने तार तार करेगी तु