खफ़ा क्यों होंगे घर के मेज़बान थोड़ी हैं,
हम भी देंगे जवाब हम बे-ज़ुबान थोड़ी हैं।
न किसी ने बांटा था और न कोई बाँट पायेगा,
ये हमारा वतन है, किसी का ख़ाली मकान थोड़ी है।
कौन मांगेगा हमसे ज़मीं से मोहब्बत का हिसाब,
हर किसी की पेशानी पर सजदे का निशान थोड़ी है।
वो कर रहे हैं दावा वतन को लुटेरों से बचाने का,
ख़ैर छोड़ो सियासी लोग इतने मेहरबान थोड़ी हैं।
पुरखे हमारे भी वही हैं, पुरखे तुम्हारे भी वही हैं,
पर हमारे सीने में दिल तुम्हारी तरह बेजान थोड़ी है।
पहले बहर पढ़ो, रदीफ़ समझो, क़ाफ़िया जानो,
राहत साहब को जवाब देना इतना आसान थोड़ी है।
राहत साहब ने जो कहा था ठीक ही कहा था,
किसी के बाप का 'हिन्दुस्तान ' थोड़ी है।
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