अल्फाज़ बहुत सीमित से मालूम पड़ते हैं मुझे।
बात अगर हो तुम्हें बयां करने कि इनमें।।
बावजूद इसके, कि तुम्हें पूरा लिख पाऊं,
इस काबिल नहीं मैं।
पर इस वजह से मैं रुक जाऊं ये मुम्किन भी नहीं।।
तलब थी कुछ कहने कि तुमसे, पर वक्त मुनासिब न था।
तुम उलझे थे अपनी परेशानियों तले,
और मन मेरा कुछ कह न सका।।
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