गुस्से में बांधकर अपनी खुली जुल्फों को, नाराज़गी यूँ जताया ना करो
बिन बात ही यूँ रूठकर हमसे, तुम जियादा इतराया ना करो
बैठो जरा करीब आकर, दो बातें जरा सुकूँ भरी कर लें
हर बार बहस करके ,अपनी मनमानी यूँ चलाया न करो
खैर लगती बहुत प्यारी हो , जब गुस्से से यूँ देखती हो तुम
इन अदाओं को रखो जरा सम्भालके,
यूँ अपनी मासूमियत भरी निगाहों में हमें उलझाया ना करो
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