इन राहों पर हम कब से चलते चले जा रहे है कभी गिरते.. कभी संभलते.. इन्हें अपना बना रहे है
नज़रे उठा कर जब देखी .. मंज़िल कितनी दूर है यहाँ कोहरे से सब ढका है .. मगर चलना ज़रूर है
ना रास्ता साफ है.. ना हमे मंज़िल दिखाई जा रही है बिगुल की आवाज़ है बस.. जो सबको सुनाई जा रही है एक दूसरे की तरफ़ देख, शख्सियतें कदम बढ़ाई जा रही है मानो.. सबका शोर शांत बैठा है ..और ख़ामोशी चिल्लाईं जा रही है
दोस्त सब कुछ भूल कर .. छोड़ कर ..आगे बढ़ना जरूरी है ।। अभी भी वक़्त है.. बस चलना जरूरी है.. चलना जरूरी है ।।
बदन पर कपड़ो का रंग कोई भी हो .. जिंदगी के रंग खुशहाल होने चाहिए .. पसंद आपकी कैसी भी हो.. दुसरो से मेल खाए, न खाए अपनी नज़र में आपकी जिंदगी गुलज़ार होनी चाहिए ।।