अंशुमान सिंह रघुवंशी🤴   (अंशुमान रघुवंशी🥰)
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Joined 19 February 2020


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Joined 19 February 2020

Yq walo premium ke liye bolna bnd kro aur yq chalane do — % &

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हम दोनों को एक दूजे से;
मोहब्बत ऐसी हो गई है...!!
दिल तो दो है,,,,
पर धड़कन एक हो गई हैं...!!

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वैसे तो कोई बुरी
आदत नहीं है हमें...
🥰
बस आपको याद
करने की थोड़ी लत लग गई है...!!

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दिल टूट गया है 💔
अब बवाल क्यों करें

खुद ही पसंद किया था
अब सवाल क्यों करें 🥲

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न जिद है न कोई गुरूर है हमे,
बस तुम्हे पाने का सुरूर है हमे,
इश्क गुनाह है तो गलती की हमने,
सजा जो भी हो मंजूर है हमे।😘

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डूब जायेगा उन आंखों में संभलते सभलते तू
बेशक दरियायों में क्यों ना तैर रखा हो
जब रख देगा इश्क की राहों में कदम अपना
तब पता चलेगा जैसे जल्लादों की बस्ती में पैर रखा हो🥲

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दिल टूट जाए हमारा फिर भी मुस्कुराना पड़ता है
छुप छुप कर रोते हैं सबसे आंसू छिपाना पड़ता है
जिम्मेदारियों के पीछे हमारा इश्क भी मुकम्मल नहीं होता
घुट घुट कर जीते है हसने मुस्कुराने का भी दिल नहीं होता
जिम्मेदारियां निभाते निभाते हमारे खुद के कोई अरमान नही बचते
अपनी ख्वाहिशें दफना देते है क्योंकि हमारे ख्वाहिशों के लिए आसमान नहीं बचते
हम हर किसी के घाव भरते है मगर हमारा कोई मरहम नहीं होता
अजी कौन कहता है जनाब हम लड़कों की जिंदगी में कोई गम नही होता

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कभी मां की गोद में सोते हैं
तो कभी जिम्मेदारियों के बोझ में
कभी नौकरी की तलाश में रहते हैं
तो कभी सुकून की खोज में
हम हर किसी की तकलीफें समझते है
मगर अपनी तकलीफों का किसी से जिक्र नहीं करते
जिम्मेदारियों के पीछे कुछ इस कदर भागते हैं
की अपनी ख्वाहिशों की भी फिक्र नहीं करते
हमसे हर किसी को उम्मीदें है
मगर कोई हमसे हमारी ख्वाहिशें पूछे
ये किसी का मन नहीं होता
अजी कौन कहता जनाब हम लड़कों की जिंदगी में कोई गम नहीं होता🥲

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अगर कभी मेरी यादों से तेरी आजादी हो जाए
अगर किसी और के साथ तेरी शादी हो जाए
तो हो सके तो मुझे मेरे इश्क का दाम देना
अपने बेटे को मेरा ही नाम देना🥲

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नदीम बाग़ में जोश-ए-नुमू की बात न कर
बहार आ तो गई रंग-ओ-बू की बात न कर

अजीब भूल-भुलय्याँ है शाहराह-ए-हयात
भटकने वाले यहाँ जुस्तुजू की बात न कर

तबाह कर न मज़ाक़-ए-जुनूँ की ख़ुद्दारी
दिल-ए-तबाह किसी तुंद-ख़ू की बात न कर

ख़ुद अपने तर्ज़-ए-अमल को सँवार और सँवार
मिरे रफ़ीक़ तरीक़-ए-अदू की बात न कर

गुरेज़-ए-हुस्न को अंदाज़-ए-हुस्न कहते हैं
नज़र से देख मगर ख़ूब-रू की बात न कर

ये बर्क़-ए-हुस्न जलाती तो है मगर नासेह
वो और शय है मिरे शो'ला-ख़ू की बात न कर

ये मय-कदे की फ़ज़ा कह रही है ऐ 'अख़्तर'
कि तिश्नगी में भी जाम-ओ-सुबू की बात न कर

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