प्यास अब लगती नहीं मुझे मुझे डर लगता है पानी से वो पानी जो पारदर्शी है जिसमें दिखता है मेरा अक्स मेरी आँखें और उन आँखों में तुम्हारा चेहरा मैं सिर्फ़ शराब पीता हूँ..— % &
कभी जो मैं संभल गया तो टूट कर बिखर गया.. हवा का रुख किधर गया? जो कह रहा था रात में चलेगा मेरे साथ में.. ये रात भी हसीन है मोह में विलीन है चाँद की ये चाँदनी मृषा के अधीन है जुगनू जगमगा रहे तारे टिमटिमा रहे फूल हरसिंगार के झर रहे जमीन पर खुशबू का है यूँ असर कि मंत्रमुग्ध हो गया मुरौवत की आस में थोड़ा क्षुद्र हो गया रात की वो बात है रात में वो याद है पर हवा का रुख किधर गया? जो कह रहा था रात में चलेगा मेरे साथ में!
अमावस की काली रातें हल्की-फुल्की सी बरसातें जब प्रणय गीत गाते-गाते आँखों से अश्रु बह आते पैरों में पहन पाजेब प्रिये छन-छन करते तुम आ जाते पायल की झनकार सुन हम झूठ-मूठ का सो जाते फिर मेहंदी वाले हाथों से माथे को तुम मेरी सहलाते तब झूठी करवट ले-लेकर ऐसे ही तुम्हे हम भरमाते फिर थोड़ी देर परेशां कर यूँ झटपट हम उठ जाते तब घनी अंधेरी रातों में चलती प्यार भरी बातें..