मुस्कुरा जरा खुल के,भूल जा गुज़िश्ता, कि ये ज़ीस्त नहीं जावेदां। मुस्कुरा जरा खुल के,चुन सदा कांटों भरा रास्ता, कि गुल-पोश राहों में चल के वो इशरत कहां।
कभी जीवन की नैय्या डगमगाती है, तो कभी यूं ही किनारा मिल जाता है..। धूप-छांव तो सबकी जिंदगी का हिस्सा हैं.., मगर एक उम्र के बाद चुनौतियों का सैलाब उमड़ आता है..। सर पे जिम्मेदारियां हजार लिए,पता नहीं कब बचपना चला जाता है। पच्चीस की उम्र के बाद खुल के मुस्कुराना एक ख्वाब सा रह जाता है..।
मिलो गर कभी किसी टूटे हुए इंसान से.., तो बैठ जाना थोड़ी देर पास उसके, कोई रिश्ता ना सही इंसानियत के नाते। मिलो गर कभी किसी टूटे हुए इंसान से.., तो कर लेना दो चार बातें उससे, कुछ और ना सही अजनबी होने के नाते।
यूं ही बिन बात तुझ संग झगड़ना अच्छा लगता है। माना अब बड़ी हो गई हूं.., फिर भी बाजार में तेरी ऊंगली थामे चलना अच्छा लगता है । जान बुझ के गलती करना..,फिर तेरी डांट खाना अच्छा लगता है। माना अब बड़ी हो गई हूं.., फिर भी तेरे सामने बचकानी शरारतें करना अच्छा लगता है ।
दुविधाओं से भरी है जिंदगी, साहस देना हे मुरारी। खुशियों की रौशनी हो, गम की हो चाहे रात घनेरी, धीरज देना हे गिरधारी। उबड़-खाबड़ हो, कांटों भरा हो चाहे सफर, राह आसान ना बनाना तुम मेरी। बस डगमगाए कदम जब कभी, हिम्मत भरना हे बनवारी।
लिख लेती हूं तेरी याद में कविताएं कई, जैसे एक मां बच्चों की राह तकते, बुन लेती है स्वेटर कई। याद कर लेती हूँ रोते,मुस्कुराते तेरे चेहरे के भाव कई, जैसे एक माँ मेले में बिछड़े बच्चे की कई साल तक उकेरती रहती है तस्वीरें कई।