ANKIT MANRAL   (सिंह)
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ध्यान
Joined 8 December 2019


ध्यान
Joined 8 December 2019
5 NOV 2021 AT 6:58

सीख लो हमसे वफादारी
सीख लो हमसे ईमानदारी
किसी से तो निभानी पड़ेगी
कहीं तो दिखानी पड़ेगी

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11 APR 2021 AT 7:50

हर रोज ये शाम आ जाती थी
नवी नवेली दुल्हन की तरह सज कर
मेरी एक नजर जाती थी वादियों से होकर
और रुकती थी बहती नदियों पर
पैर पर पैर रखकर देखता था मैं
घर से मीलों दूर खड़े हिमालय
लेकिन आज नहीं दिख रहा था
मुझे मेरे पास का गांव तक
प्रकृति ने मुझे सब कुछ दिया
लेकिन मैं उसे बदले में कुछ भी नहीं लौटा पाया
ऐसा लग रहा था जैसे सूरज थकने लगा हो
ओर बसंत की खुशबू धुएं में बदल गई हो
चांद तक अपनी पहचान खो रहा था
सिसकते जंगल कह रहे थे तुमने हमारी इज्जत लूटी है
वह नई सुहागन हंसती थी तो यह देवभूमि कहलाती थी
सोचो अगर वह हंसते हंसते रो दे तो.....

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27 FEB 2021 AT 17:23

खूबसूरती को ठोकर मार मार
ना जाने किस हद की तलाश में हूं मैं
रोज एक ही जगह डूबते सूरज को देख कर
न जाने किस नजारे की तलाश में हूं मैं
यूं तो रूहानी खुशबूएं बिखरी हैं मेरे इधर उधर
फिर भी ना जाने किस कस्तूरी की तलाश में हूं मैं
यू शब्दों की मधुशाला में मदहोश होकर भी
न जाने किन सवालों के जवाब में हूं मैं
यह उमड़ती जवानी के उन्माद में होकर भी
न जाने क्यों बचपन की तलाश में हूं मैं
बचपन से अब तक मां से सीखा था प्रेम करना
न जाने अब इससे ज्यादा किसकी तलाश में हूं मैं

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26 DEC 2020 AT 8:22

Last wish
(आखिरी इच्छा)

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12 DEC 2020 AT 7:47

निशब्द एक स्त्रीत्व पर 🙏

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6 OCT 2020 AT 14:11

यह जो चेहरे हैं यह मुखोटे हैं
असल चेहरे वह हैं
जिनकी वजह से
तुम लोगों को याद रहते हो
या लोग तुम्हें भूल नहीं पाते
मासूम चेहरे और राज गहरे
प्यार वफा ओर लोगो की बातें
बस बातें है जनाब बातों का क्या

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21 SEP 2020 AT 8:36

शब्दों के सागर से
लाऊंगा मोती चुन के
उमेर दूंगा कागज पर
शायद तब भी मुझे
बेहतर शब्द ना मिले
तुम को बयां करने के
फिर भी कोशिश करूंगा
सारे शब्द नीलाम कर दूं
बस इतना जानता हूं कि
प्रेम , जैसे शब्द तुमसे सुरु
ओर तुम में ही समा जाते हैं
शब्दकोष के सबसे छोटा शब्द
होने के बावजूद भी तुम पर
भावनाओं की अभिव्यक्ति
करना इतना आसान नहीं है

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10 SEP 2020 AT 7:48

मुश्किल है उसकी खूबसूरती पर लिखना
की तारीफ में कुछ कमी हो तो शब्द रूठ जाएं
सुना है आईना भी उससे शरारत करता है
जब वह सवरने को बैठती है
अगर लगा ले वह काजल आंखों में
तो पूर्णिमा का चांद भी फीका पड़ता है
उसमें है वह सिंफनी संगीत
जो महकते हर गली शहर फिजाओं मैं
वह जैसे गर्मियों की सुबह ओर जाडो की शाम सी
काश मेरे पर वह शब्द होते जिसमें बयां हो खूबसूरती तुम्हारी
फिर कभी मिलो तो तुम तुमको ले चलूंगा उन पहाड़ों पर
जहां वादियां गाती हैं और फूल खिल खिलाते हैं
जहां गिरते झरने बहती नदियां और बहकते बादल हो
फुर्सत में लिख लूंगा तुम पर नजमा कोई
जिसमें बयां हो पहाड़ों से खूबसूरती तुम्हारी
काश तुम मिलो ❣️🤍

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22 JUL 2020 AT 7:06

शायद मिलती कभी तुम
तो दिखाता तुम्हे अपना शहर
तुम को भी चलता पता🌈
की है कोई उससे भी खूबसूरत
की खुशबू, रंग रूप सब उड जाता
मेरा शहर देख कर तुम्हारा
कास तुम कभी मिलती🌻
तो तुम्हे तुम्हे दिखाता की
यहां वादियां भी गाती है🎶🌈
खुसबू निकलती है हर रास्ते से ।
तुम मिलती कभी तो🛤️
तुम्हे दिखाता यहां हर
रास्ता स्वर्ग को जाता है 🛤️
कास तुम कभी मिलती ❤️

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10 JUN 2020 AT 7:49

एक स्त्री हमेशा से खूबसूरत रही है
ना जाने उसे क्यों तोला जाता है
उसी के रंग रूप भेष भूसा
कोमलता कठोरता आकर्षण
वस्त्र सौंदर्य मानसिकता से
इस धरा पर हर किसी के लिए कोई बना होता है
तुम जब किसी स्त्री, पुरुष का ह्रास करते हो
तो तुम उस कुम्हार के रचना पर सवाल करते हो
जिसने तुमहै मुझे ओर पूरी सृष्टि बनाई है

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