जब भी मैखाने जाता हु सराब का प्याला उठाता हु प्याले के सिसो मे तेरी सूरत नज़र आती है मेरे अधूरे पन को तेरी जरूरत नज़र आती है हर इबादत हर दुआ मे तुझे मांगता हु | भले ही तेरे लिए मै अब गैर हु पर मै आज भी तुझको जानता हु | तेरे दिल मे तो अब मेरी हैसियत एक कचरे की तरह होगी पर मै आज भी तुझे अपनी दुनिया मानता हु
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