Anil Singh  
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Joined 24 June 2021


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10 HOURS AGO

जिंदगी शय नहीं, सलीका है
रोते हैं, मगर इसे रोते नहीं हैं!

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1 MAY AT 4:20

मैला मन मोहे मार गयो
मोहन मैं तेरे द्वार!

जीवन यह कर्मों की गठरी
सपनों का बंधन सारा,
ठगा गया जब जग में डोला
कटता गया किनारा,
डूबे, जब समझे पार भयो
मोहन नाव मझधार!

अपनी सांस हुई न अपनी
अपना धाम पराया,
जग में रोते-रोते क्यूं आया
समझा जब उम्र गंवाया,
भ्रम में मैं सब हार गयो
मोहन तेरी बलिहार!

संत ढ़ूढ़्यो संताप मिल्यो
जग झूठों की भीड़,
आंख खुली और मन के अंधे
दिखे न पर की पीर,
तुमसे अभिमुख अभिसार भयो
मोहन तेरा उपकार!

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28 APR AT 4:48

आप सभी साहित्यकारों के साथ, सानिध्य और आशीष का कृतज्ञ
🙏🍁🍁🙏

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27 APR AT 5:18

चुनाव
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थ्योरी ऑफ़ इवोल्यूशन ने खूब धूम मचाया
इतनी सी बात बता कर
कि वायरस, बिच्छू, सांप, बंदर
सब आदमी के ही रिश्तेदार हैं!

इनके हमारे पूर्वज होने पर
कोई विवाद नहीं!


( रचना अनुशीर्षक में )

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25 APR AT 4:39

शीत की सर्द सुबह ने मुठ्ठियाँ भींच दी थी
ग्रीष्म की धूप ने खोल दिए हैं बटन,
मैं भीग जाता हूं कोई भी हो मौसम !

ओंस में दांत किटकिटा कर
पसीने में गुनगुनाकर
मैं विषमताओं से
गीत गाकर जीत जाता हूं !

सिर पर गंगा लोटे से गिरें
या मैं डुबकी में गंगा नहाऊं
कंठ से कंपित होते हैं वेद-मंत्र !

विज्ञान अथवा कोई ज्ञान हो
पानी जीवन है,
पानी से तृप्त है
काया और आत्मा !!!

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23 APR AT 4:55

ए जिंदगी, ये कैसा तेरे इश्क का नशा
घूंटों में पीते हैं आंखों से छलके आंसू !



...Anil Singh
















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20 APR AT 5:43

आंखें करती हैं सवाल कितना
बताती हैं बिन कहे हाल कितना !

आंसुओं में आसमां भर के बादल
खामोशी में आदमी बेहाल कितना !

नीयत रंगीन और फितरत शोख लिए
सरे-राह करती हैं बवाल कितना !

रात नींद दिन में ख्वाब का सुरूर
बेबाक तेवर देती हैं जवाब कितना !

कैदी को कर दिया मोहब्बत का खुदा
पलकों में इश्क का खुमार कितना !

गिरती हैं उठती हैं इंतजार में राहों में
गुजरी उम्र गुजरा साल कितना !

'अनिल' आंखें मन का दर्पण
महल मन का माया-जाल कितना !

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18 APR AT 5:13

गमों से मेरा वास्ता है ,
दिल को है मोहब्बत की तलब !


.Anil Singh















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15 APR AT 5:03

जिंदगी आबाद करने में रूह से डर गया हूं
क्या बनने चला था और मैं क्या बन गया हूं !

पढ़ी नाम को सारी किताबें मगर न ढ़ंग से
हकीमी यूं कि अपनी ही दवा से मर गया हूं !

मगरूर इतना कि खुद को भी काम न आया
रूंधा अश्कों में यूं कि गले तक भर गया हूं !

अब दुनिया मेरी है मगर सुकून नहीं मेरा
हराम नींद है नीलाम जमीर कर गया हूं !

गिनती कर सकूं तो जरूर मैं शिकवा करूं
कोई अपना न मिला बाहर या मैं घर गया हूं !

गांव के कच्चे घर में छप्पर सर पर टपका
बिल्डिंग ही गिर गई अब जब शहर गया हूं !

मुकदमा महकमा महफिल मंदिर या मस्जिद
नंबर आता ही नहीं जिस भी दर गया हूं !

अनिल नए वक्त में कुछ तो हट कर बात है
बाजार में बिक गया हूं गुनाहों में धर गया हूं !

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12 APR AT 7:00

कभी प्यार का इम्तिहां दिए इंतजार करके
अब वही करते हैं उस रूठी का मनुहार करके !






न इश्क ने छोड़ा मुझे,
न मैंने इश्क !

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