सह सकते हैं पर दिखा नहीं सकते,
रो देते हैं किसी को बता नहीं सकते,
लगता हैं पेट को किसी ने अंदर से निचोडा़ हैं,
रीड की हड्डी को किसी ने हथौडे़ से तोड़ा हैं,
मुड स्विंग्स और शरीर से निकलती अलग ही घिन,
तुम्हें क्या पता कैसे होते हैं हर महीने के वो पाँच दिन,
वो दर्द वो तकलीफ वो लडकी का एहसास,
वो निकलती जान रुकी रुकी सी हर सास,
वो चिडचिडापन वो बात बात पर गुस्सा,
थोडीसी राहत वो पार्टनर से प्यार जरासा,
मुश्किल रातो में अच्छेसे पेश आना नहीं हैं मुमकिन,
तुम्हें क्या पता कैसे होते हैं हर महीने के वो पाँच दिन,
वो दर्द में होकर सबको अच्छा दिखाना,
ऐसे दिनों में ईश्वर के करीब नहीं जाना,
वो लोगों का देखने का नजरिया झेलना,
चेहरे पर हसी रख जानलेवा दर्द से खेलना,
जो चाहता है सब मिलेगा थोड़ा रख यकीन,
तुम्हें क्या पता कैसे होते हैं हर महीने के वो पाँच दिन।।
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