ख़ुदा जाने कैसे गुजरेगी रात कि वो नहीं आए
हाय कितनी बोझिल हैं शाम ओ सहर के साए
सितारे भी, झुकाये हैं अपना सर, नाकामी पर
शौक से गए थे वो चाँद लाने, पर ला नहीं पाए
ये आसमाँ भी ना बड़ा निष्ठुर है, रोता भी नहीं
उसे क्या पता कि किसने, कितने आँसू बहाए
खुदारा, बहुत परेशान है, सुबह की किरणे भी
वो कहाँ है, किसके चाह मे भला, मोती लुटाए
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