Part II Post-244
मोहब्बत को मोहब्बत के खातिर छोड़ आए हैं,
अपना सा लगता नही है ना उनका शहर,
उनकी गलियों के रास्ते हम मोड़ आए हैं,
मोहब्बत को मोहब्बत के खातिर छोड़ आए हैं।
मुकद्दर ने ना चाहा कि कोई मुलाकात हो उनसे
मुकम्मल कर के हर बात हम
अपनी लकीरें उनके हाथों में छोड़ आए हैं
हम मोहब्बत को मोहब्बत के खातिर छोड़ आए हैं
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