अल्पिका अवस्थी "मातृका"   ("मातृका ")
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Joined 19 March 2019


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अब
प्रेम
का
नाम
मत
लेना....!

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हृदय से हृदय की
कहानी हुई है 
मीरा कृष्ण की
दीवानी हुई है
नूपुर की ध्वनि से
रिझाये ये सबको 
दिखाकर चितवन
मधुर फसाए ये सबको
उसी रंग में रंगी मेरी
प्यारी सी दीदी
मुबारक हो आपको
यह शुभ दिन दीदी

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बिन ब्याह
'सुहागन'

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तुमसे 'तुम तक'

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हम वहीं पर खड़े तुमको मिल जाएंगे
जाओगे जिस जगह तुम मुझे छोड़ कर
प्रेम तो है अलौकिक तेरा और मेरा
मुड़ के आवाज देना ठहर जाएंगे

हर तरफ चंद्रिका स्वेत चादर बनी
मुस्कुराने लगी है प्रभा की किरण
बनके जुगनू निशा में चमक जाएंगे
मुड़ के आवाज देना ठहर जाएंगे

— % &

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स्वार्थपरक — % &

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मै तुम्हारे
प्रेम की
अवधूतिका
हूं

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जन्मदिन की हार्दिक
शुभकामनाएं
मेरे दाऊ

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वैवाहिक वर्षगांठ की
चाची जी और चाचाश्री
आप दोनों को हार्दिक
शुभकामनाएं

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प्रीत पन्नों में छिपी अभिव्यक्ति
का आधार तुम हो।
निस्सार जीवन में छिपा
अक्षुब्ध रसमय सार तुम हो।।
मैं नहीं मुझमें नहीं
किंतु तुममे है समाई।
टूट कर फिर से संवरने की
नई प्रत्याश तुम हो।।
शब्द पन्नों पर उकेरा
जो तुम्हारी लेखनी ने।
छोड़कर अभिप्राय सारे
पत्र का अभिज्ञान तुम हो।।
मृदुनि कुसमादापि जिसकी
एक एक पंक्ति ठहरी।
स्वल्प है सौन्दर्य सारा
मात्र एक अभिराम तुम हो।।
मुंडेर पर आकर ठहरी
लालिमा धुंधली निशा की।
प्रभात के प्रकाश का
मधुर अविरल गान तुम हो।।

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