कोलाहल के दौर में ये शांति कहां से लाऊँ मैं
हर तरफ के शोर से भला खुद को कैसे बहलाऊँ मैं
मालूम है कि ये शौक़ मेरे ही हैं पर हद मेरी भी है ये कैसे बतलाऊँ मैं!
नाजुक पड़ते पड़ावों पर जब नन्हें कदम डगमगाते हैं
कैसे सब जान कर भी सब कुछ अंजान बन जाऊँ मैं
मालूम है कि ये शौक़ मेरे ही हैं पर हद मेरी भी है ये कैसे बतलाऊँ मैं!
हालांकि अब किसी की कमी का एहसास होता नहीं
साथ कोई हो तो वो शख़्स दोस्त जैसा होता नहीं
मुंह मोड़कर भी इतराऊं मैं अब कैसे उनको समझाऊं मैं
की आदत नहीं मजबूरी है मेरी की हर चेहरे को देख अब मुस्कुराऊं मैं
मालूम है कि ये शौक़ मेरे ही हैं पर हद मेरी भी है ये कैसे बतलाऊँ मैं!
किसी उधेड़बुन में उलझी ये मन की गुत्थी है
सुलझाने की कोशिश में उलझ उलझ ही जाऊं मैं
मन के अंदर की अग्नि किसी ज्वालामुखी सी दहकती है
बड़े टकराव से ये मन ही मन चुभती है
मालूम है कि ये शौक़ मेरे ही हैं पर हद मेरी भी है ये कैसे बतलाऊँ मैं!-
जितन... read more
आज बड़े दिनों बाद चर्चे में उसका नाम आया था
खो गया था जो कभी यादों के पन्नों में
जिक्र में उसके सारे दबे हुए अरमान जगाया था
माना कि अब फासले बहुत है
मर्यादा की एक सीमित लकीरें हैं
पर मन की तरंगों को कैसे न बिखेरूं !!
आज बड़े दिनों बाद खुशियों का नया मकाँ सजाया है ।
वो रुक रुक कर ही सही पर हर बार मुझे अपना हाल सुना जाता है
कैसे कहूं कि अब इश्क़ नहीं है
नाम को आज भी सुनकर
शर्म से दिल के तार भी गुनगुना लेते हैं।
कितना भी लिख लूं।
कितनी ही बातें कर लूं
वो एक ऐसा सब्जेक्ट है
जिसे पढ़ने का और रटने का दिल करता है
दिल आखिर तू बार बार उसी मोड़ पर क्यों लाता है।-
कुछ लोग भूल गए हैं शायद मुझे
लेकिन मुझे भी वो कुछ खास याद नहीं!
हैरान करती हैं निगाहें जब
चेहरे जाने पहचाने से दिखते हैं,
हम ठहरते हैं
सोचते हैं, और फिर
नजाने क्या समझकर क्या सोचकर आगे बढ़ जाते हैं।
ऐसे ही तो चल रहा है
नजरें मिल भी रही होती हैं तो चुराने के लिए
कुछ बातें होती भी है तो किसी बहाने से
यूं ही नहीं कोई अब रुकता है तुम्हें रोक कर बताने के लिए
दो कदम साथ चल देने के लिए
बस यूं कहें कि बस चल रही है ज़िंदगी की गाड़ी किसी घड़ी की सुइयों की तरह।
नाजुक हालात हों तो आगे पीछे हिचकर चलती है
पर कोशिश पूरी रहती है ।
अब तो खामोशी में भी कोई घड़ी ही टिक टिक करके अपनी आवाज सुनाती है।-
सुना है फूल खिलते हैं
लेकिन सच कहूं तो देखे भी हैं
बड़े गौर से निहारते हुए
पल पल सराहते हुए
कुछ अलग सा होता है ये एहसास
शायद जो मेरे हिस्से का मोमेंट है
वो किसी और की जरूरत हो
नजाने कैसे किस बहाने से
कोई चीज तुम्हे मिल जाती है
मुद्दतों तक चाहत की आजमाइश थी
या बस इसकी किस्मत सिर्फ मेरे लिए ही बनाई थी।-
People are likely to attract to new things, new place, new people and making new friends, but.....
deep down you know who were the best and what are the rest-
Have you ever heard silence speak louder than voices?
This is the echo of many episodes of emotions burning down with the seasons.
Lest you realize that being at peace requires more patience than many silence.
Peace is something you tie within yourself
Peace is also a united effect of many broken emotions.
Peace can concile, imply ,define in many forms,
but the only thing that actually shapes it, is to reconcile within yourself.
Then only you can be at peace even in your odds.-
जीवन में जब आप की कमियां, खामियां और गलतियां आपके अचीवमेंट से ज्यादा हो तब भगवान को धन्यवाद देने का दिल नहीं करता।
तब बस केवल सवाल ही चुभता है कि –मैं ही क्यों?
और उससे भी ज्यादा जब सवालों के जवाब और सवाल खड़े करते हैं,
तब तो ऐसा जाल बनता है मानो ये कभी न खत्म होने वाली कड़ी मेरे हिस्से ही आ पड़ी है।
क्या करें मंजर ही कुछ ऐसा हो जाता है कि बंदिशों की होड़ में खुद को कितना आगे ले जाना है ये साबित करने में भला कौन ही पीछे होगा आखिर ये victim card का गेम कितनी sympathy बटोरता है!!
लेकिन यकीन मानो हर दर्द की स्याही सिर्फ कोरे पन्ने भरने की कोशिश नहीं होती कुछ दर्द को बयां करने की आजमाइश होती है।
चेहरे पे पड़े मुखौटे को कुछ देर हटा कर सुस्ताने की मेहनत होती है।
हालात कैसे भी हो मुस्कुराने की पुर जोर कोशिश होती है।
सच कहें तो ये दुनिया हमें भी victim card का प्लेयर ही समझेगी जबकि दिल तक तो उनके पहुंचेगी जिनके मन की सच्चाई आज पन्नों में लिपटाई है।
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जब कम थे तो काफ़ी थे
अब भरे हैं तो अनगिनत कमियों के स्वामी हैं।
नयन नक्श जो कल तक गहरे नशीले थे
आज एकदम से पानी है।
पता नहीं ये पैसों की मार थी, या जरूरत ही बस काफ़ी थी।-
कड़वे सवाल सिर्फ तीखे जवाब के ही हक़दार होते हैं, वरना शक्कर भी जब ज्यादा घुल जाए तो, उसी मीठे से परहेज करना सीखना पड़ता है। बस इतनी सी ही हक़ीक़त सीखनी होती है या यूं कहें कि याद रखनी पड़ती है जीवन में मिले रिश्तों में या फिर ज़िंदगी में घुले रिश्तों में ताकि तालमेल का अनुपात पूरा वृतांत समझने के लिए काफ़ी हो।
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