Afzal Rabbani   (Afzal Sultanpuri)
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Joined 5 September 2017


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Joined 5 September 2017
11 MAY AT 17:57

इश्क़ लगता नहीं था कमतर है
तीसरा क्यों हमारा नम्बर है

चाँद निकला है आसमानों में
ईद का दिन हुआ मुकर्रर है

कोई मूसा तो मैं नहीं साहब
सामने नील है समंदर है

एक तस्वीर है दीवारों पर
एक तस्वीर दिल के अंदर है

कलमा पढ़ने कि अब ज़रूरत है
दिल को अब तो सुकूं मयस्सर है

तेरे जाने का दुख लगा ऐसे
सर पे जैसे बड़ा सा पत्थर है

जब तलाशा उसे मोहब्बत से
क्या ख़बर थी कि दिल के बाहर है

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2 MAY AT 17:47

हमारा होश बिगड़ा जा रहा है
तिरे झुमके कयामत ढा रहे हैं,

मिरी क्या हैसियत है जहां में
तिरे सदके ही सब कुछ पा रहे हैं,

मुझे हासिल नहीं तुम जाने जाना
तभी तो ज़हर हम ये खा रहे हैं,

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30 APR AT 23:00

खून से अब मैं नहाने वाला हूँ,
छोड़कर दुनिया जाने वाला हूँ,

खुदकुशी है हराम जानता हूँ मैं
मर के सबको दिखाने वाला हूँ,

मैं हूँ ख़ामोश मत समझ गूंगा
दिल की धड़कन सुनाने वाला हूँ,

तेरे दिल में जगह नहीं हासिल
दर्द का घर मैं बनाने वाला हूँ,

बिन बताए चला तो जाऊंगा मैं
लौटकर फिर न आने वाला हूँ,

मेरी मय्यत से खुश रहेंगे ये सभी
अपनी मय्यत पे रुलाने वाला हूँ,

ज़ख़्म पे ज़ख़्म दे रही है दुनिया
ये लाश कीड़ों को खिलाने वाला हूँ,

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30 APR AT 0:03

तेरे ग़म से निजात मिल जाए,
और तुमको हयात मिल जाए,

तेरी हसरत है हार जाऊं मैं
हाँ तो तुमसे ही मात मिल जाए,

साफ़ इनकार करना बनता है
चाहे नहरे फुरात मिल जाए,

लौटकर एक दिन तू आएगा
है दुआ तेरा साथ मिल जाए,

बैठकर बात कर रहे थे हम
फिर से वैसी ही रात मिल जाए,

तू अगर मिल नहीं सका हमदम
क्या मज़ा कायनात मिल जाए,

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22 APR AT 16:27

इश्क़ की सरहदों को पार करो
कर सको गर तभी तो यार करो

करना आए अगर सलीके से
बे-तहाशा सनम को प्यार करो

जो मोहब्बत का सुन के दौड़ पड़े
ऐसे लड़कों को होशियार करो

जिस्म को रौंदने का आदी हो
ऐसे आशिक़ को आश्कार करो

वो फरेबी हुआ गलत क्या है
हाँ मगर तुम तो ए'तिबार करो

तुमको अल्लाह खुश रखे हरदम
ये दुआ रोज़ बार-बार करो

लौट आएगा एक दिन अफ़ज़ल
सब्र से साथ इंतिज़ार करो

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12 APR AT 21:59

ये सफ़र जब तवील लगता है
दूर इतना कि मील लगता है

इस तरह पाँव में पड़े छाले
एक तिनका भी कील लगता है

बात करने का जो सलीका है
परवरिश में ही ढील लगता है

जो फरिश्ता करीब बैठा है
मुझको तो इज़राइल लगता है

इक परिंदा उड़ा हिफाज़त में
काबे का अबाबील लगता है

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11 APR AT 20:56

ईद का दिन और तुम हो,
पास तुम हो और गुम हो,

दिल तिरा अब हो गया है
खुश रहो ना ही गुमसुम हो,

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9 APR AT 4:32

ख़त्म होनी थी ये कहानी भी,
मर गया राजा और रानी भी,

नाम उसका नहीं लिया मैंने
ऊला बेढंग बिगड़ा सानी भी,

ऐसे अल्फाज़ लिख लिए मैंने
जिसका कोई नहीं है मानी भी,

वो गुलाबी में खूब लगती है
उसपे जचती है रंग धानी भी,

हर कोई देखकर तड़पता है
मछली तड़पी अगरचे पानी भी,

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3 APR AT 11:28

पढ़ा था जो किताबों में वही सब कुछ हुआ भी है,
बहुत ढूंँढा नहीं पाया कहीं पर तो ख़ुदा भी है,

नहीं मिलता पता था ये मगर दिल की रही ख़्वाहिश
मिले मुझको कहीं पर तो कहूंँ कोई फ़िदा भी है,

दुआ में भी तुम्हें मांँगा इबादत में किया गिर्या
मोहब्बत है अगर नुक़सान तो इसमें नफ़ा भी है,

तुम्हें तोहफ़ा जो भेजा है बहुत ही कीमती है सब
हमारा दिल, तेरी हसरत, मोहब्बत भी, दुआ भी है,

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1 APR AT 9:56

तुम सा उम्दा मिसाल है भी नहीं,
चीखूँ तुम पर मज़ाल है भी नहीं,

ख़ुद को बरबाद कर लिया हमने
और इसका मलाल है भी नहीं,

आप पर ज़ुल्म कर नहीं सकता
दिल में गंदा ख़्याल है भी नहीं,

इस पे तो ऐतराज बनता है
ख़ैर कोई सवाल है भी नहीं,

मौत को याद करना अफ़ज़ल है
खुदकुशी कुछ कमाल है भी नहीं,

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