जिंदगी किस मुकाम पर आ गई कि अब तकलीफ़े हँसा देती है और दिलाशाएँ रूला देती है, पहले होती थी तकलीफों से परेशान अब हर हाल में ख़ुश रहने आदत सी ना जाने क्यों हो गई है।
गुस्ताख़ दिल के किये की सजा भुगत रहें हम अब तक, हज़ार टुकड़े हुए फ़िर भी धड़कता है उनके ही खातिर, हर पल उनके ख़्वाब संजोता जैसे समझता यह कुछ नहीं, इंतजार में कट गई ज़िन्दगी आया ना वो लौटकर मेरे ख़ातिर।